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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ ४०७ ०३ मनुकश्रमणोपासकचरितनिरूपणम् १११ नातिदूरे नातिसमीपे उचितस्थाने 'बहवे अन्न उत्थिया परिवसंति' बहवोऽन्ययूथिकाः परिवसन्ति के ते अन्ययूथिका बहवो वसन्ति ? तत्राह - 'तं जहा ' इत्यादि । 'तं जहा' तद्यथा 'कालोदायी सेलोदायी' कालोदायिनामकाः शैलोदायिनामकारच ' एवं जहा सत्तसए अन्नउत्थिय उद्देसर' एवं यथा सप्तमशतके दशमेऽन्यथिको देश के 'जान से कहमेय' मन्ने एवं ' यावत् कथमेतत् मन्ये एवमित्यन्तः सप्तमशतकीयान्ययुथिकमस्तात्र उपवर्णनीयः 'एवं जहा सत्तमसर' इत्यादिना यत् सूचितं तदिह संक्षेपतः प्रदर्श्यते, तथाहि - कालोदायी शैलीदायी सेवालोदायी उदयः नामोदयः नर्मोदयः अन्यपालकः, शैलपालकः, शंखपालकः, सुहस्ती गाथापतिरिति नामका बहवोऽन्ययूथिकाः परिवसन्तिस्म गुणशिलचैत्यस्य समीपदेशे तेषामन्वयूथिकानां कदाचित् एकत्र संहितानां परस्परं 'अदूर सामंते' न अधिक पास और न अधिक दूर ऐसे उचित स्थान पर 'बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति' अनेक अन्य तीर्थिकजन रहते थे । उनमें 'तं जहा कालोदायी सेलोदायी' किसी का नाम कालोदायी था किसी का नाम शैलोदायी था । ' एवं जहा सत्तमए अनउत्थिय उद्देसए' इत्यादि यह सब वर्णन पहिले सप्तम शतक के दश उद्देशक में किया गया है, और यह वर्णन वहां 'जाव से कहमेयं मन्ने' इस पाठ तक है यही बात यहां संक्षेप से प्रदर्शित की जाती है जो वहां अनेक अन्यतीर्थिकजन रहते थे उनमें से कितनेक के नाम इस प्रकार से हैं- कालोदायी, शैलोदायी, सेवालोदायी, उदय नमदय अन्यपालक, शैलपालक, शंखपालक सुहस्ती और गाथापति आदि गुणशिलक चैत्य के समीप के प्रदेश में बसे हुए उन अन्यतीर्थिकों की अधिक पांसे नहीं क्षेत्रा उचित स्थान पर " बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति” मने अन्यतीर्थ न रहेता ता. "तं जहा - कालोदायी, सेलोदायी" तेमां अध हुनु नाम असोहाथी हेतु मने अनुं नाम शैसे हाथी हेतु "एवं जहा सत्तमसए अन्नउत्थिय उद्देखए" इत्यादि मा तमाम वर्णुन पडेलां सातभां शताना हसभां उद्देशामां वामां भाव्यु छे भने ते वाशुन त्यां " जाव से कहमेवं मन्ने” मा पाठ सुधी छे. वात मडियां संक्षेपथी अताववामां આવે છે. તે આ પ્રમાણે છે—ત્યાં અનેક અન્ય મતવાદીએ રહેતા હતા. तेभांना डेटबाउनुं नाभ-हासोहाथी शैसे हाथी, सेवासहायी. उदय, नमेहिय, અન્યપાલક શૈલપાલક, શ ખપાલક હસ્તી અને ગાથાપતી વિગેરે ગુણુ. શિક્ષક ચૈત્યના નજીકના પ્રદેશમાં વસેલા. તે અન્યતીથિકા જ્યારે પરસ્પર શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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