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भगवतीस्त्रे प्रणिधानम् एकाग्रता इत्यर्थः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम! 'तिविहे पणिहाणे पन्नत्ते' त्रिविधं प्रणिधानं प्रज्ञप्तम्, त्रिविधम्-मनोवाकायभेदादिति। मनोवाकायभेदानेव दर्शयन्नाह-'त जहा' इत्यादि। 'तौं जहा' तद्यथा 'मणपणिहाणे' मनः मणिधानम् 'वइ पणिहाणे' वचःमणिधानम् कायपणिहाणे कायप्रणिधानम् । 'नेरइयाणं भंते! कइ पणिहाणे पन्नत्ते' नरयिकाणां भदन्त ! कतिप्रणिधानं प्रज्ञप्तम् , भगवानाह-'एवं चेत्र' इत्यादि । 'एवं चेव' एवमेव त्रिविधमेव विविध प्रणिधानं नारकाणाम् मनोवाकायभेदेन, न केवलं नारकाणामेव त्रिप्रकारकं प्रणिधानम् अपितु अन्येषामपि तत्राह-एवं जाव थणियकुमाराणं' एवं यावत् स्तनितकुमाराणाम् असुरकुमारादारभ्य स्तनितकुमारदेवपर्यन्तानामेव
अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं । 'कइविहे गं भंते ! पणिहाणे पण्णत्ते' हे भदन्त ! प्रणिधान कितने प्रकार कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! प्रणिधान (एकाग्रता) तीन प्रकार का कहा गया है। मन की एकाग्रता मनःप्रणिधान है वचन की एकाग्रता वचनप्रणिधान है। और कायकी एकाग्रता कायप्रणिधान है इस प्रकार मन वचन और कायकी एकाग्रता को लेकर प्रणिधान तीन प्रकार का होता है। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'नेरइया णं भंते.' हे भदन्त ! इन प्रणिधानों में से नैरयिकों के कितने प्रणिधान होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं। 'एवं चेत्र' हे गौतम ! नैरयिकों के मन वचन और काय के प्रणिधान से तीनों ही प्रणिधान होते हैं ये तीनों प्रकार का प्रणिधान केवल नारक जीवों के ही होते हों सो बात नहीं है किन्तु 'एवं जाव
वे गौतम चाभी प्रभुने मे पछे छे - 'कइविहे गं भंते ! परिहाणे पन्नत्ते" उ मन् प्रणिधान- सा प्रश्न ४ामा मावेस छ ! तेन। उत्तरमा प्रभु ४३ छ “गोयमा " गौतम प्रणिधानએકાગ્રતા ત્રણ પ્રકારનું કહેલ છે. મનની એકાગ્રતા-મન પ્રણિધાન છે. વચનની એકાગ્રતા વચનપ્રણિધાન છે. કાયની એકાગ્રતા કાયપ્રણિધાન છે. એ રીતે મન, વચન અને કાયની એકાગ્રતા રૂપ ત્રણ પ્રકારનું પ્રણિધાન उस छे. शथा गौतम स्वामी प्रसुन मे पछे छे ,-"नेरइयाणं भंते !" હે ભગવન આ પ્રણિધાને પૈકી નારકીય જીને કેટલા પ્રણિધાન હોય છે? तना उत्तरमा प्रभु ४ छ -“एवं चेव" गौतम ! ना२४ीयवान मन, વચન અને કાયરૂપ ત્રણે પ્રણિધાન હોય છે. આ ત્રણે પ્રકારના प्रणिधान १७ ॥२७ वान डाय छे, तेभ नथी ५२ "एवं
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩