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________________ ८४ भगवती सूत्रे अतः कृतानि कर्माणि श्रमणायुष्मन्, हे आयुष्मन् श्रमण ! गौतम ! यस्मात् आतङ्कादिना जीवस्यैव मरणं भवति नान्येषाम् अतश्वेतः कृतान्येव कर्माणि भवन्ति न तु कथमपि अतः कृतत्वं कर्मणामिति भावः । 'से तेणद्वेणं जाव कम्मा कज्जंति' तत्तेनार्थेन यावत् कर्माणि क्रियन्ते भवन्तीति, पत्र यावत् पदेन - जीवाणं चेयकड़ा कम्मा कति नो अधेयकड़ा' इत्यस्य पदसमूहस्य ग्रहणम्, 'एवं नेरइयाण fa' एवं रथिकानामपि, नैरयिकजीव संबन्धिकर्मविषपोपि अनेनैव प्रकारेण कर्मविषयो ज्ञातव्यः, 'एवं जात्र वैमाणियाणं' एवं यावद्वैमानिकानाम्, एवमेव वैमानिकजीव पर्यन्तं विज्ञेयम् | 'सेवं भंते सेवं भंते' तदेवं भदन्त तदेवं मदन्त, हे भगवन् कर्मणां चेतः संपादनविषये यत् देवानुप्रियैराख्यातमेतत् एवमेव सर्वमेवसमझाया गया है । 'से तेणद्वेणं जाव कम्मा कज्जंति' इसीलिये हे गौतम ! मैंने पूर्वोक्त रूपसे कहा है कि कर्म जीवकृत हैं, अजीवकृत नहीं हैं क्योंकि आतङ्क (सद्य घातिरोग) आदि से जीव का ही मरण होता है अन्य अजीवादिका नहीं, अतः वे जैसा कहा है वैसे ही हैं। यहाँ यास्पद से 'जीवाणं चेrकडा कम्मा कज्जंति नो अचेयकडा' इस पद का संग्रह हुआ है । 'एवं नेरइयाण वि' इसी प्रकार का कथन नैरयिक जीवों के द्वारा किये गये कर्मों के सम्बन्ध में भी जानना चाहिये । ' एवं जाव वैमाणियाण' और इसी प्रकार का कथन यावत् वैमानिक जीवों तक के सम्बन्ध में भी जानना चाहिये। 'सेवं भ'ते ! सेवं भते । जाव विहरह' हे भदन्त ! कर्म चेतनकृत होते हैं उस विषय में आप देवानुमिय ने जो कथन किया है-वह ऐसा ही है है भदन्त ! वह ऐसा द्वारा सभलववामां भाव्यु छे. "से तेणट्टेणं जाव कम्मा कज्जंति " तेथी के ગૌતમ ! મે‘પૂર્વોકત રૂપથી કહ્યુ` છે કે કમ જીવકૃત છે. અજીવકૃત નથી કેમકે आत ंग (सद्योधाती रोग) विगेरेथी लवनुं न भर थाय छे. अन्य अनुबाहिउनु नहि मेथी ते ने उछु ते तेभर है. अडिया यावत् पहथी “जीवाणं कडा कम्मा कज्जंति नो अचेयकडा " या पहना संग्रह थयो छे. " एवं नेरइयाण वि" मे४ रीतनु उथन नारडीय भवेथे उरेस उन सभधभां પણ સમજી લેવું. " एवं जाव वेमाणियाण " मेन રીતનું કથન ચાવત્ વાણુમંતરથી લઈને વૈમાનિક સુધીના જીવાના સંબંધમાં પણ સમજી લેવું. " सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाव विहरइ" से लगवन् ! भु मात्मा रेसा છે. એ વિષયમાં આપ દેવાનુપ્રિયે જે કથન કર્યુ. છે. તે તેમજ છે કે ભગવન ! તે તેમજ છે. અર્થાત્ સાચુ` છે. એ પ્રમાણે કહીને ગૌતમ સ્વામીએ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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