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________________ ५१. भगवतीस्त्रे सम्यक्त्वं पुनर्नपाप्स्यन्ति ते चरमाः, ये तु नारकत्वादिना सह प्रतिपतितमपि सम्यक्त्वं पुनः प्राप्स्यन्ति ते अचरमाः। 'मिच्छादिट्ठी जहा आहारमो' मिथ्या. दृष्टिय या आहारकः, मिथ्यादृष्टिः स्याच्चरमः स्यादचरम इत्यर्थः, योहि जीवो नरकानिर्गत्य गुरूपदेशद्वारा मोक्ष यास्यति स मिथ्याष्टित्वेन चरमः, यस्तु मोक्षं न यास्यति स मिथ्यादृष्टित्वेन अचरम इति । नारकादिस्तु यो मिथ्यास्त्र सहितं नारकत्वं पुनर्न प्राप्स्यति स तदपेक्षया चरमः, यस्तु तादृशं नारकत्वं पुनः प्राप्स्यति सोऽचरमः। 'सम्मामिच्छादिट्ठी एगिदियविगलिंदियवज्जं सिय चरिमे, सिय अवरिमे' सम्यमिथ्याष्टिरेकेन्द्रियविकलेन्द्रियवजे स्याचरमः कदाचित् अचरम होता हैं-जो नारकादिक नारकत्वादि पर्याय के साथ प्रतिपतित हुए सम्यक्त्व को पुनः नहीं पाये गे वे चरम हैं, और जो नारकत्वादि के साथ प्रतिपतित हुए सम्यक्त्व को पुनः प्राप्त करेंगे वे अचरम हैं । 'मिच्छादिही जहा आहारओ' मिथ्यादृष्टि जीव आहारक के जैसा कदाचित् चरम और कदाचित् अचरम होता है। जो जीव नारक से निकलकर मोक्ष जावेगा वह मिथ्यादृष्टिरूप से चरम है और जो मोक्ष नहीं जावेगा वह मिथ्यादृष्टिरूप से अच रम है। तथा जो नारकादिक मिथ्यात्वसहित नारकत्व को पुनः प्राप्त नहीं करेगा। वह उस अपेक्षा से चरम है एवं जो ऐसे नारकत्व को पुनः पाप्त करेगा वह अचरम है। 'सम्मामिच्छदिट्टी एगिदियविगलिं. दियवसिय चरिमे सिय अचरिमे' एकेन्द्रिय जीवों को और विकले. न्द्रिय जीवों को मिश्रदृष्टि नहीं होती है इसलिये यहां उनका परिहार किया गया है। अतः इन्हें छोडकर सम्यगमिथ्यादृष्टि कदाचित् ચરમ છે. અને જે નારકપણાની સાથે પતિત થયેલા સમ્યકૂવને ફરીને प्रत २0 तसा अयम छ. 'मिच्छादिद्री जहा आहारओ' माडा२४ प्रभार મિથ્યાદષ્ટિ જીવ કેઈવાર ચરમ અને કઈવાર અચરમ હોય છે. જે જીવ નરકથી નીકળીને ગુરૂના ઉપદેશથી મે ક્ષ મેળવતા નથી તે મિથ્યાષ્ટિરૂપે અચરમ છે. તેમજ જે નારક વિગેરે મિથ્યાત્વ સાથે નારકપણાને ફરીથી નહીં પ્રાપ્ત કરે તે અપેક્ષાએ તે ચરમ છે. અને તેવા નારકપણને ફરીથી પ્રાપ્ત ४२0 ते अयम छ. 'सम्मामिच्छादिदि एगिदियविगलिंदियवज्जे सिय चरिमे सिय अचरिमे' मन्द्रिय वाने अने विसन्द्रियवान मिलिट हाती નથી. તેથી અહિયાં તેને છોડી દીધા છે. જેથી તેને છોડીને સમશ્મિધ્યાદષ્ટિ કદાચિત્ ચરમ અને કદાચિત્ અચરમ છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે નાક શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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