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________________ प्रमेयवस्द्रिका टीका श०१८ उ०१ सू०२ संयतासंयत्वे आहारकद्वारम् ५९१ भावं न त्यजन्ति अतस्ते अचरमा एव नतु कदाचिदपि चरमा भवन्तीति। 'नेरइया चरिमा वि अचरिमा वि" नरयिकाश्चरमा अपि अचरमा अपि ये नारकाःनरकावृत्ताः, नरकं पुनर्न यास्यन्ति किन्तु मोक्षं गमिष्यन्ति, ते नारकभावापेक्षया चरमाः, एतद् व्यतिरिक्ता अवरमाः । 'एवं जाव वेमाणिया" एवं यावद्वैमनिकाः, एवमेव-नारकत्रदेव वैमानिकपर्यन्तजीवेषु चरमत्वाचरमत्वयोर्व्यवस्था ज्ञातव्या कदाचिन् चरमा अपि कदाचिदचरमा अपि, इति, "सिद्धा जहा जीवा" सिद्धा यथा जीवाः, यथा जीवा:-जीवत्वपर्यायमपरित्यजन्तोऽचरमाः, तथा सिद्धा अपि कदाचिदपि सिद्धत्वपर्यायं न त्यजन्ति, इति ते सिद्धा अचरमा एव नतु चरमा नहीं हैं, किन्तु अचरम हैं। क्योंकि वे अपनी जीवस्वपर्याय को कभी नहीं छोड़ते हैं। इस प्रकार से 'नेरच्या चरिमावि अचरिमा वि' नैरयिक समस्त चरम भी हैं और अचरम भी हैं। जो नारक नरक से उद्धृत होकर पुनः नरकगति में नहीं जाकर मुक्ति में जाते हैं जैसा कि श्रेणिक का जीव अब नरक से निकल कर मोक्ष जावेगा वे नारकभाव की अपेक्षा चरम हैं और जो ऐसे नहीं हैं वे नारक उस भावकी अपेक्षा अचरम हैं । 'एवं जाव वेमाणिया' इसी प्रकार से चरमता और अच. रमता वैमानिक तक के समस्त जीवों में भी जाननी चाहिये, 'सिद्धा जहा जीवा' सिद्धों में जीवों के जैसी सर्वदा अचरमता ही है ऐसा जानना चाहिये-क्योंकि जिस प्रकार जीव अपनी जीवत्वपर्याय से कदा. चिदपि रहित नहीं होते हैं । इसी प्रकार से सिद्ध भी अपनी सिद्धत्व पर्याय से अय कभी भी रहित होनेवाले नहीं हैं अतः वे अचरम ही ध्या गौतम ? अथा छ७१५४ाना पर्यायथा 'नो चरिमा, अचरिमा' ચરમ નથી પણ અચરમ છે. કેમકે તે પિતાના જીવપણાની પર્યાયને કઈવખત छ।उता नथी. 20 शत 'नेरइया चरिमा वि अचरिमा वि०' संघमा नै२५। ચરમ પણ છે. અને અચરમ પણ છે. જે નારક નરકથી નીકળીને ફરીથી નરકગતિમાં નહીં જતાં મુકિતમાં જાય છે. જેવી રીતે શ્રેણિકને જીવ, હવે નરકથી નીકળીને મોક્ષમાં જશે તેવા નારકે નારકભાવથી ચરમ છે. અને જેઓ मावा नथी. ते ना? ते माथी अय२म छ. 'एवं जाव वेमाणिया मा પ્રમાણે ચરમપણું અને અચરમપણું વૈમાનિક સુધીના બધા માં પણ सभा: “सिद्धा जहा जीवा' वानी भा४ सिद्धो हमेशा मयसभ २४ જે તેમ સમજવું. કેમકે જે રીતે જીવ પિતાની જીવ પર્યાયથી કેઈપણ સમયે રહિત થતા નથી. એજ રીતે સિદ્ધપણ પિતાની સિદ્ધપર્યાયથી કોઈપણ સમયે શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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