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________________ भगवती सूत्रे * < संज्ञाभयसंज्ञा - मैथुनसंज्ञापरिग्रहसंज्ञासु एवं ओरालियसरीरे ५', एवम् औदारिकशरीरे ५ औदारिक- वैक्रियाहारक- तैजसकामंग - शरीरेषु इत्यर्थः ' एवं ' मणोजोगे ३' एवं मनोयोगे ३ मनोयोगवचोयोगकाययोगेषु इत्यर्थः ' सागारोओगे अगागारोवओगे' साकारोपयोगे अनाकारोपयोगे च 'बट्टमाणस्स' वर्तमानस्य देहिनः 'अन्ने जीवे अन्ने जीवावा' अन्यो जीवो देह इत्यर्थः अन्यो जीवात्मा ' से कइमेयं भंते । एवं तत् कथमेतत् भदन्त ! एवम् ? परैरुच्यमानं शरीरजीवात्मनोः सर्वथा पार्थक्यं तत् किं सत्यम् ? एतदन्तः परयूथिकमताभि मायकः प्रश्नः । भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा ।' हे गौतम ! 'जं गं अन्न उत्थिया एवमाइक्खति यत् खलु ते अन्ययूथिका एवं पूर्वोक्तप्रकारेण जीवपदवाच्पशरीर - जीवात्मनोः सर्वथैव पार्थक्यम् आरूपांति 'जाव' यावत् भाषन्ते प्रज्ञापयन्ति प्ररूपयन्ति तत् 'मिच्छं ते एवमाकवंति० ४ मिथ्या ते भयसंज्ञा में, परिग्रहसंज्ञा में, और मैथुन संज्ञा में, 'एवं ओरालियस रीरे ५' औदारिक शरीर में, वैक्रियशरीर में, आहारकशरीर में तेजस शरीर में, और कार्मणशरीर में, 'एवं मणोजोगे ३' मनोयोग में, वचन योग में, एवं काययोग में 'सागारोवओगे अणागारोवओगे' साकारोपयोग में, और अनाकारोपयोग में 'वट्टमाणस्स अन्ने जीवे अन्ने जीवाया' वर्तमान देही का शरीर अन्य है और जीवात्मा अन्य है । 'से कहमेयं भंते ! एवं' सो हे भदन्त ! ऐसी जो शरीर और जीवात्मा की भिन्नता-विष as अन्यतीर्थिकों की मान्यता है वह ऐसी ही है अर्थात् सत्य है ? इस प्रश्न के उत्तर में महावीर प्रभु कहते हैं-' गोयमा ! जं णं अन्न उत्थिया एवमाक्खति जाव भासंति, मिच्छं ते एवमाइक्खंति' 'हे गौतम ! जो वे अन्ययूधिक जीव पदवाच्य शरीर में एवं जीवात्मा में अब संज्ञामां, मने मैथुन सज्ञाभां "एवं ओरालि यसरीरे ( ५ ) " मोहारि४ शरीरमां, वैडिय शरीरमां ने अणु शरीरमां "एवं मणोजोगे ( ६ ) ” भन योगभां वयनयोगभां भने अययोगमा “सागारोवओगे, अणागरोवओगे” साठारोपयोगयां मने मनाउारोपयोगमा “वट्टमाणस्स, अन्ने जीवे अन्ने जीवाया" वर्तमान हेडीनुं शरीर अन्य के सने लवात्मा अन्य छे. "से कहमेयं भंते एवं " हे लभवन् ! शरीर अने कवात्मानी भिन्नता विषे અન્ય મતવાદિએની આવી જે માન્યતા છે. તે શું સત્ય છે ? આ પ્રશ્નના उत्तरमा भडावीर प्रभु उडे छे ! " गोयमा ! जं णं अन्नउत्थिया एवमाइक्वंति जाव भासंति मिच्छं ते एवमाइक्खं ति ( ४ ) " हे गौतम अन्य भतवाहि શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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