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________________ ३१६ भगवतीसूत्रे खंति' एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण शरीरजीवात्मविषये आख्यान्ति कथयन्ति 'जाव परूवें ति' यावत् प्ररूपयन्ति, यावद् पदेन 'भासंति पन्नति' इत्यनयोः संग्रहः किं प्रज्ञापयन्ति ते ? तत्राह-एवं खलु' इत्यादि । 'एवं खलु पाणाइवाए मुसा. वाए जाब मिच्छादसणसल्ले वट्टमाणस्स अन्ने जीवे अन्ने जीवाया' एवं खलु पाणातिपाते मृपावादे यावत् मिथ्योदर्शनशल्ये वर्तमानस्यान्यो जीवोऽन्यो जीवात्मा तत्र अन्ययुयिकाः अन्यतैर्थिकाः ते च शरीरस्य जीवस्य चात्यन्तं भेदमाहुस्ते एवात्र अन्ययूथिकत्वेन ग्रहीतव्याः। माणातिपातादिक्रियाविषयेषु वर्तमानस्य देहिनः 'अन्ने जीवे अन्ने जीवाया' जीवति-प्राणान् धारयतीति जीवात्मा विषयक जो भिन्नता की मान्यता है उस विषय की सत्यता के ऊपर पूछा है-वे कहते हैं-'अन्नउस्थिया ण भंते ! 'हे भदन्त अन्य यूधिकों का जो 'एवं आइक्खंति' ऐसा कहना है । 'जाय परूवेंति' यावत् प्ररूपणा करते हैं-यहां यावत् शब्द से 'भासंति पन्नवे ति' इन क्रियापदों का संग्रह हुआ है। 'एवं खलु पाणाइवाए मुसावाए जाव मिच्छा दसणसल्ले वट्टमाणस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया' कि-प्राणातिपात में मृषावाद में यावत् मिथ्यादर्शनशल्य में वर्तमान प्राणी का जीव भिन्न है और जीवात्मा भिन्न है। यहाँ 'जीवति प्राणान् धारयति इति जीवः' इस व्युत्पत्ति के अनुसार जीव शब्द का अर्थ शरीर लिया गया है। अन्य यूधिक अन्य तैधिरुजन शरीर और जीव का अत्यन्त भेद मानते हैं। इसलिये उनका ऐसा कहना है कि प्राणातिपात आदि क्रियाविशेषों में वर्तमान देही का जीव शरीर अन्य है और जीव मंबन्धी जीवात्माવિષયમાં અન્ય મતવાદિઓની શું માન્યતા છે. તે વિષયની સત્યતા જાણવા भाट प्रभुने पूछत। 3 छ, “अन्न उत्थिया गं भंते !" भगवन् ! अन्य भतवाहिया "एवं आइक्खंति" मे छड छे “जाव परूवेति" यावत् ५३५९।। ४२ छे. भडियां यावत् शपथी "भासंति" भाषण ४२ छ. ५न्नति प्रज्ञापना ४२ छ. •u (यापहीन सय थये। छ. "एवं खलु पाणाइवाए मुसावाए जाव मिच्छादसणसल्ले वट्टमाण्णस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया" શું પ્રાણાતિપાતમાં કે મૃષાવાદમાં યાવત્ મિથ્યાદર્શન શલ્યમાં રહેલા प्राणान १ मिन्न छ १ भने वाम लिन छ १ मडियां "जीवति प्राणान् धारयति इति जिवः" मे व्युत्पत्ति प्रमाणे ' शहना શરીર થાય છે. અન્યયુથિક-અન્યતીથિક જન શરીર અને જીવને અત્યંત ભેદ માને છે. જેથી તેઓનું એવું કહેવું છે કે પ્રાણાતિપાત વિગેરે ક્રિયા વિષેશમાં રહેલા શરીરધારીને જીવ શરીરથી જુદો છે. અને જીવાત્મા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨.
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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