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________________ ૨૮૮ भगवतीसरे पाणेऽपि दण्डोऽनिक्षिप्तः स खलु एकान्तबाल इति वक्तव्यं स्यात् अनिक्षिप्त:अपत्याख्यातो भवति स एकान्तबाल इति वक्तव्यं स्यात् । 'से कहमेयं भंते ! एवं तत् कथमेतद् भदन्त ! एवम् ? भगानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'जणं ते अन्नउत्थिया एवं आइक्खंति' यत् खलु ते अन्ययूयिका एवमाख्यान्ति 'जाव वत्त सिया' यावत् वक्तव्यं स्यात् 'जे ते एवं आइंसु मिच्छं ते एवं आईसु' ये ते एवमाहुः मिथ्या ते एवमाहुः । यदि ते अन्य यूथिका मिथ्या वदन्ति तदा तद्विषये सत्यं किमिति शङ्कया पाह-'अहं पुण' इत्यादि । 'अहं पुण गोयमा' अहं पुनौतम ! अत्र 'पुन' रित्यव्ययः तु शब्दार्थबोधकः तेन-अहं तु 'एवमाइक्खामि' एमाख्यामि 'जाव परूवेमि' यावत् भरूजीव के विराधना का त्याग नही है-परन्तु और सब जीव के विराधना का त्याग है ऐसा जीव तो एकान्ततः बाल ही है। सो इस विषय में 'से कहमेयं भंते! एवं ' गौतमने प्रभु से उनका ऐसा कहना क्या सत्य है ? ऐसा पूछा है । उत्तर में प्रभु ने कहा 'गोयमा' हे गौतम ! 'जण्णं ते अन्नउत्थिया एवं आइक्खंति जाव वत्तव्वं सियो' जो उन अन्यतीर्थिकों ने थावत् जिस जीव ने केवल एक जीव की हिंसा करने का त्याग नहीं किया है, वह एकान्त बाल है' यहां तक जो कहा है। 'जे ते एवं आहंसु मिच्छंते एवं आहंसु' सो ऐसा उनका कहना मिथ्या है-उन्होंने यह असत्य कहा है । तो हे भदन्त इस विषय में सत्य क्या है ? इसका उत्तर देने के लिये प्रभु कहते हैं-'अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि, जाव परूवें मि' मैं तो इस विषय में ऐसा कहता हूं-यावत् प्ररूपित બાલપંડિત નથી. પણ બીજા અજીવના વધને ત્યાગ કર્યો હોય એ જીવતે सन्तित: पास छ. मा विषयमा से कहमेयं भंते ! एवं' गौतम स्वामी से પ્રભુને પૂછયું કે હે ભગવન તેઓનું આમ કહેવું શું સાચું છે? તેના ઉત્તરમાં प्र छ है-गोयमा ! 3 गौतम ! 'जण्णं ते अन्नउत्थिया एवं आइक्खंति जाव वत्तव्वं सिया' ते अन्य तीथि २ वे यावत् ५४त मे પણ જીવની હિંસા કરવાને ત્યાગ કર્યો નથી. તે એકાન્તબાલ छ.' मा सुधानु रे ४थन यु छे ते “जे तं एवं आसु मिच्छं ते एवं आसु" तेभानु त प्रमाणेनु यु त मिथ्या छ. अर्थात तमाश તે અસત્ય કહ્યું છે. તે હે ભગવાન આ વિષયમાં સાચું શું છે? । प्रश्न उत्तर भापता प्रभु ४ छे -"अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि" तो An विषयमा म हुँ छ. यावत् ५३पित શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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