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________________ ३५८ भगवतीसत्रे किरियाहि पुट्ठा' तेऽपि खलु जीवाः कायिक्या यावत् पञ्चभिः क्रियाभिः स्पृष्टाः २ । 'अहे णं भंते !' अथ खलु भदन्त ! ' से कंदे अप्पणी० ' तत् कन्दम् आत्मनो गुरुकता ३ प्रपतत् तत्र देशे स्थितान् यान् जीवान् प्राणेभ्यो व्यपरोपयति, तत्र कन्दस्य प्रचालयितुः प्रपातयितुः पुरुषस्य कति क्रियाः भवन्तीति प्रश्नः, भगवानाह - 'जाब चहिं पुढे' यावत् चतसृभिः क्रियाभिः स्पृष्टः स पुरुषः । अत्र यावत्पदेन 'गोयमा ! जावं चणं से कंदे अध्पणो गुरुवत्ताए जाव जीविया श्रो ववशेवेइ तात्रं चणं से पुरि सेकाइयाए' इत्यन्तं पदसन्दर्भस्य ग्रहणं भवति, एतादृशः पुरुषः चतुः क्रियया स्पृष्टो भवति प्राणातिपाते तस्य साक्षात्कारणत्वाभावात् इति ३ । 'जेर्सि कन्द निष्पन्न हुआ है | ते वि णं जीवा पंचहि किरियाहि पुट्ठा' वे जीव भी पांचों ही क्रियाओं से युक्त होते हैं २, 'अहे णं भते ! से कंदे अपणो०' अब गौतमने इस सूत्र द्वारा प्रभु से ऐसा पूछा है कि हे भदन्त ! वह कन्द अपने भार से गिरता हुआ उस जगह में रहे हुए जीवों को प्राणों से व्यपरोपित करता है उस कन्द को गिरानेवाले पुरुष को feart क्रियाएँ लगती हैं ? तात्पर्य ऐसा है कि वृक्ष के कन्द को यदि कोई पुरुष हिलाता है, और हिलाते २ ही वह कन्द अपने ही भार से टूटकर जमीन पर गिर पडता है तो उसे जमीन पर रहे हुए प्राणादिप्राण से रहित हो जाते हैं-अतः उस कन्द को हिलानेवाले उस पुरुष को कितनी क्रियाएँ लगती हैं तो इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'जाव पुढे' यावत् वह पुरुष चार क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। यहां यावत् पद से 'गोयमा ! जावं च णं से कंदे अपणो गुरुपत्ताए जाव जीवियाओ ववशेवेह तावं च णं से पुरिसे काइयाएं यहां तक का पाठ जीवा पंचहि पुट्ठा" ते वो पापांचे डियागो वाजा थाय छे, (२) अद्दे णं भते ! से कंदे अप्पणी " डे लगवनू ते ४ पोताना लास्थी पडिने ते જગાએ રહેલા જીવેાના પ્રાણા છેડાવે છે. તેા તે કંદને પાડવાવાળા પુરુષને કેટલી ક્રિયા લાગે છે. કહેવાનુ તાત્પય એ છે કે વૃક્ષના કદને જો કાઈ પુરુષ હલાવે અને હલતાં હલતાં જ તે કદ પેતાના ભારથી ચૂંટીને જમીન પર પડી જાય તે તે જમીન પર રહેલા પ્રાણાદિ જીવા પાતાના પ્રાણથી છૂટી જાય છે. અર્થાત્ મરી જાય છે. જેથી, તે કદને હલાવવાવાળા તે પુરુષને કેટલી ક્રિયા લાગે છે? તે તેના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે નાવ उहि पुट्टे" यावत् ते पुरुष यार डियागोथी स्पृष्ट थाय छे, अडियां यावत् पहथी " गोयमा जावं च णं से कंदे अप्पणो गुरुयत्ताए जाव जीबियाओ बबरोवेइ तावं चणं से पुरिसे काइयाए" અહિ સુધીના પાઠ ગ્રહણ "( શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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