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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१७ उ०१ सू०२ तालदृष्टान्तेन कायिक्यादिक्रिया नि० ३४७ मपि कायिकयाद्याः पञ्चक्रियाः संलगन्ति अन्यजीव संघट्टनादौ परम्परया तेषां निमित्तीभूतत्वात् |२| 'अहेणं मंते' अथ खलु भदन्त । अथ अनन्तरम् तालफलानां चालनानन्तरम् ' से तालफले अप्पणी गुरुबताए' वत् तालफलम् आत्मनो गुरुकतया भारवत्तया 'जात्र पच्चोवयमाणे' यावत् प्रत्यचपतत् सत् अत्र यावत्पदेन 'संभारिकaur resierरिकतया' इत्यनयोर्ग्रहणं भवति 'जाई' तत्थ पाणाई' ये तत्र प्राणाः तत्र भूम्यादौ स्थितास्तान् 'जात्र जीविपाओ बरोवेद' 'जाव' यावत् अत्र यावत्पदेन 'भूयाई जीवाई सत्ता विराहे, अभिहण बढेइ लेसे, संघा एइ, संघट्टे, परितावे, किलामेइ, उवहवेर, ठाणाओ ठाणं संकामेइ' इत्येतेषां करणीभूत हुए हैं वे अन्य जीव के संघट्टन आदिमें परम्परा से निमित्तीभूत होते हैं। इसलिये वे भी कायिकी आदि पांच क्रियाओं से स्पृष्ट हुए कहे गये हैं।
अब गौतम प्रभु से पूछते हैं- 'अहे णं भ'ते ! से तालफले अप्पणीगरुयत्ताए जाब पच्चीयमाणे' हे भदन्त ! वह ताल फल हिलाने के बाद यदि अपने ही निज के भार से डाल से टूट पड़ता है तो - 'जाई तत्थ पाणाई जाव जीविधाओ दवरोवेद' ऐसी स्थिति में नीचे पडते ही उसके द्वारा जितने भी वहां प्राण यावत् जीव होते हैं वे सब जीवन से रहित होते हैं 'तए णं से भते । कइकिरिए' तो उस हिलानेवाले पुरुGet feart क्रियाएँ लगती है ? इस प्रश्न का तात्पर्य ऐसा है । ताल पर चढकर यदि कोई पुरुष उसके फल को हिलाता है और हिलाने के साथ ही वह उस वृक्ष से अपने भार से टूटकर नीचे जमीन पर पड जाता है तो वह पडते ही उस जमीन पर कि जहां वह पड़ा है वहां रहे हुए यावत्पद से गृहीत 'भूयाई' भूतों' को 'जीबाई' जीवों को 'सत्ताई'
જેથી જેના શરીર તેમાં કારણ ભૂત થયા છે. તેએ અન્ય જીંત્રના સ’ગટ્ટુન વિગેરેમાં પર પરાથી નિનિત્તરૂપ હાય છે. જેથી તેએ પણ કાચીકી વિંગેર પાંચ ક્રિયાથી પૃષ્ટ થાય છે. હવે ગૌતમ સ્વામી પ્રભુને એવુ' પૂછે
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"अहे णं भंते! से तालकले अप्पणी गरुयत्ताए जाव पच्चोवयमाणे" हे ભગવન્ ! તે તાડફળ હલાવ્યા પછી જો તે પેાતાના જ ભારથી તૂટી પડે તે " जाई तत्थ पाणाई जाव जीवियाओ ववरोवेइ" मेवी स्थितिमां नीचे पडतां જ તેના દ્વારા ત્યાં જેટલાં પ્રાણિયા યાવત્ જીવ હાય છે. તે અંધા भवन वगरना भने छे. अर्थात् भरी लय छे. "तए णं से भंते कइ किरिए " તા હે ભગવન્ ! તે હલાવવાવાળા પુરુષને કેટલી ક્રિયાઓ લાગે છે? આ પ્રશ્ન પૂછવાના ભાવ એ છે કે-તાડ પર ચઢીને જો કાઈ પુરુષ તેના ફળને હલાવે છે અને હલાવતાં જ તે ફળ તે વૃક્ષ પરથી પાતાના पडे तो त्यां ते पडे छे ते कमीन पर रहेला अहि
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
ભારથી જમીન પર તૂટી यावत्यहथी “भूया हूं”