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________________ ३३८ भगवतील 'हत्थिराया' हस्तिरानः 'कालमासे कालं किच्चा' कालमासे कालं कृत्वा 'कहि गच्छिहिइ' कुत्र गमिष्यति 'कहिं उवान्जिहिई' कुत्र उत्पत्स्यते इति प्रश्नोऽग्रिमभवविषयकः। भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'इमीसे रपणप्पभाए पुढवीए' एतस्यां रत्नप्रभायां पृथिव्याम् 'उकोसेणे' उत्कर्षेण 'साग रोवमट्टियंसि निरयावाससि' सागरोपमस्थितिके निरयावासे सागरोपमात्मक कालोपलक्षितस्थितियुक्ते नरके इत्यर्थः, एतावता देशकालयोरपि प्रदर्शनम् उत्पत्तौ देशकालयोरेव प्रधानत्वात् तदन्येषां गौणत्वात् उत्पत्तौ देशकालयो माधान्यम् बानसाधनतया, न तु आभ्यन्तरापेक्षया उभयसाधारणापेक्षया तु धर्माधर्मयोरेव प्राधान्यमिति, 'नेरइयत्ताए उववज्जिहि नैरयिकतया उत्पत्स्यते करके 'कहिं गच्छिहिह, कहिं उववजिहिई' कहां पर जावेगा, कहां पर उत्पन्न होगा ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोसेणं' हे गौतम! इस रत्नप्रभापृथिवी के सागरोपम की उत्कृष्ट स्थितिवाले निरयावास में नारक की पर्याय से वह उत्पन्न होगा-यही बात 'सागरोवमहिइयंसि निरयावासंसि नेरइपत्ताए उववजिहिइ' इस सूत्रपाठ द्वारा प्रदर्शित की गई है। इस कथन से सूत्रकारने बाह्य साधन और आभ्यन्तर साधन इस प्रकार से दो साधनों को प्रकट किया है। तात्पर्य यह है कि उत्पत्ति में वाय साधन होने से देशकाल ही प्रधान है इन से अतिरिक्त और साधन गौण है। आभ्यन्तर की अपेक्षा से देशकाल प्रधान साधन नहीं है। तथा उभय साधारण की अपेक्षासे तो धर्माधर्म ही प्रधान साधन हैं। हस्थिराया” 8 सावन् ! स्तिun Garh “कालमासे कालं किच्चा" ५ भासमां-भरना अक्सरे भरीने “कहि गच्छहिइ कहि एवषजिहिइ" ४ii गरी भने ४यां उत्पन्न शे तेना उत्तरमा प्रभु है "गोयमा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उकोसेणं' 3 गौतम मा २त्नप्रमा પૃથ્વીના સાગરોપમની ઉત્કૃષ્ટ રિથતિવાળા નકવાસમાં નારકની પર્યાયથી તે पन्न थरी. मे त “सागरोवमदिइयसि निरयावाससि नेरइयत्ताए अवज्जिहिइ" ॥ सूत्र वा। सूबारे ४ी छ, ॥ सूत्रन यनया સૂત્રકારે બાહ્ય સાધન અને અત્યંતર સાધન એ રીતે બે સાધને બતાવ્યા છે. કહેવાનો હેતુ એ છે કે ઉત્પત્તિમાં બાહા (બહારના) સાધન હોવાથી દેશ અને કાળ જ મુખ્ય છે. તે સિવાયના બીજા સાધન ગૌણ છે. આત્યંતરની અપેક્ષાએ દેશ કાળ મુખ્ય સાધન નથી. તથા ઉભય શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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