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________________ प्रमेववन्द्रिका टीका श०१७ उ०१ सू०१ उदायि-भूतानन्दहस्तिराजवक्तव्यता ३३७ कुतुहलो गौतमो हस्तिपवरयो रुदाविभूतानन्दयोर्विशेषतः सरूपं ज्ञातु प्रश्नयन्नाह-'उदायी णं भंते !" उदायी खलु भदन्त ! 'हत्थिराया' हस्तिराज:हस्तीनाम् राजा इति हस्तिरानः-रानहस्ती, हस्तिषु प्रधानः उदायी नामकः 'कोहितो अर्णतरं उत्पट्टित्ता' कुतोऽनन्तरमुद्वर्त्य निःसृत्य कस्मात् खलु गति विशेषात् आगत्य 'उदायिह स्थिरायताए उपबन्ने' उदायिहस्तिराजतया उपपन्नः कुणिकराज्ञ उदायिनासकाट्टहस्ती। भगवानाह -'गोषमा' इत्यादि । 'गोयमा!' हे गौतम ! 'अमुरकु गारेहितो देवेहितो' असुरकुमारेभ्यो देवेभ्यः 'अणतरं उघटिता' अनन्तरमुद्वय -अमुरकुमाराख्यदेवगतितश्च्युत्वेत्यर्थः 'उदायिहत्थिरायत्तार उववन्ने' 'उदायिहस्तिराजतया उपपन्ना-उदायिनामक प्रवरकुञ्जरस्वरूपेण उत्पन्न इति । उदायी णं भंते !' उदायी खलु भदन्त ! थे।क्योंकि उदायी एवं भूतानन्द हाथियों को देखकर ही गौतम को उनके विषय में आश्चर्य उत्पन्न हुआ था सो इन्हीं के विषय में गौतमने प्रभु से ऐसा प्रश्न किया 'उदायी णं भंते ! हस्थिराया' हे भदन्त ! हस्ति. राज जो उदायी है वह 'कोहितो अणंतरं उव्वहित्ता' 'किस गति विशेष से आकर के 'उदायिहस्थिरायत्ताए उववन्ने' उदायी हस्तिराज के रूप में उत्पन्न हुआ है ? इसके उत्तर में प्रभु ने कहा-'गोयमा! असुरकुमारेहितो देवेहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता उदायिहस्थिरायत्साए उववन्ने' हे गौतम ! वह असुरकुमार देवों में से मरकर असुरकुमार देवगति से च्युत होकर उदायी हस्तिराज के रूप में उत्पन्न हुआ है। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'उदायी णं भंते ! हत्थिराया' हे भदन्त ! हस्तिराज उदायी 'कालमासे कालं किच्चा' कालमास में-मरण के समय में मरण બે હાથી હતા. તેનું નામ ઉદાયી, અને ભૂતાનન્દ હતું તે બને હાથીઓને જોઈને ગૌતમ સ્વામીને તેના વિષયમાં આશ્ચર્ય થયું જેથી તેને જ ઉદ્દેશીને ગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુને આ પ્રમાણે પૂછયું "उदायी ण भंते हत्थिराया" है मापन ! स्ति। २ हायी छे. ते "कोहि तो अणंतरं उव्वट्टित्ता" 35 गति विशेषया भावाने 'उदायी हत्थिरायत्ताए उववन्ने" Serयी स्ति।४।। ३५थी G4 थयो छ । तना उत्तरमा प्रभु 3 छ "गोयमा असरकुमारहितो अणंतरं उबद्वित्ता उदायी हस्थिरायत्ताए उबवन्ने" , गौतम, ते वोमांथा भरीन એટલે કે અસુરકુમાર દેવગતીથી ચવીને ઉદાયી હસ્તિરાજ પણાથી ઉત્પન્ન थये। छे. शथी गीतमस्वामी प्रभुने मे पूछे छे , “उदायी णं भंते । શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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