SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 320
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतीवरी प्रज्ञप्ताः हे भदन्त । वैरोचनराजस्य बलेः सुधर्मा नाम्नी सभा कस्मिन् स्थाने विधते इत्यर्थः । भगवानाह-'गोयमा ! इत्यादि । 'गोयमा !' हे गौतम । 'जंबुद्दीवे दीवे' जंबूद्वीपे द्वीपे 'मन्दरस्स पन्धयस्स उत्तरेणं' मन्दरस्य पर्वतस्य उत्तरे जम्बूद्वीपे मन्दरपर्वतस्य उतरस्यां दिशि इत्यर्थः 'तिरियमसंखेज्जे तिर्यर असंख्येयान् द्वीपसमुद्रादीन् उल्लंध्य इत्यादि 'जहेव चमरस्स' यथैव चमरस्य यथा चमरेन्द्रस्य द्वितीयशतकाष्टमोद्देशके कथितस्य उत्पातपर्वतप्रतिपादकं सूत्रं तथा बलेरपि वाच्यम् तत्राह-'जाव' इत्यादि । 'जाव बायालीसं जोयणसहस्साई यावद द्विचत्वारिंशद् योजनपहस्राणि अत्र यावत्पदेन द्वितीयशतकाष्टमोद्देशके टीकार्थ-इस सूत्र द्वारा गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-'भते ! बलिस्स बहरोणिदस्स बहरोयणरन्नो' हे भदन्त ! वैरोचनेन्द्र वैरोचन राज बलि की 'सभा तुहम्मा कहि पन्नत्ता' सभा सुधर्मा कहां कही गई है ? अर्थात् वैरोचनेन्द्र वैरोचन राज बलि की सुधर्मा सभा कहाँ है ? इसके उत्तर में प्रभु ने कहा-'गोयमा! 'हे गौतम ! 'जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं' जंबूद्वीप में मंदर पर्वत की उत्तर दिशा में 'तिरिय. मसंखेज्जे' तिरछे असंख्यातद्वीप समुद्रों को उल्लंघन करके-पारकरके 'जहेव चमरस्त' जैसा द्वितीय शतक के अष्टम उद्देशे में कथित चनर के उत्सातपर्वत का प्रतिपादक मूत्र है । वैसा ही सूत्र बलिका भी कह लेना चाहिये । 'जाव बायालीस जोयणसहस्साइ' यावत् ४२ हजार योजन उल्लंघन करने के बाद वैरोचनेन्द्र वैरोचन राज बलि का रुच. केन्द्र नाम का उत्पातपर्वत आता है। यहां यावत् शब्द से द्वितीय शतक ટીકાર્થ-આ સૂત્રથી ભગવાન ગૌતમસ્વામી મહાવીર પ્રભુને આ પ્રમાણે पूछे छे "भंते ! बलिस्त वइरोयणिदस्स वइरोयणरण्णो" असावन् वैशयनेन्द्र वैशयन पसिनी "सभा सुहम्मा कहिं पन्नत्ता" सुधर्मा सना यां ही छ ? અર્થાત્ વિરેચનેન્દ્ર વિરેચનરાજ બલિની સુધર્મા સભા કયાં છે? તેને उत्तरमा प्रभुमे यु"गोयमा !” उ गौतम "जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्व. यास उत्तरेग' दीपमा भे३ ५तनी उत्तर दिशाम “तिरियमसंखेज्जे" ति२७ असभ्यात द्वी५ समुद्रोन Ga'धन मर्यातू ५२ ४१२ “जहेव चमरस्स" रेभ भीतशत मामा शमा यमनी पात પર્વતનું પ્રતિપાદન કર્યું છે તેવી જ રીતે બલિના સંબંધમાં પણ વર્ણન કરી देवं "जाव बायालीसं जोयणमहस्साई" यावत् तालीस ४२ र योन ઉલ્લંઘન કર્યા પછી વૈરેચનેન્દ્ર, વૈરચનરાજ બલિને કેન્દ્ર નામને શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy