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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १६ उ० ८ सू० १ लोकस्वरूपनिरूपणम् २७५ मात् एकेन्द्रियमदेवाश्च अनिन्द्रियपदेशाश्व 'महवा एगिदियपरसाय अणिदियपएसाय बेइंदियस्स पएसाय' अथवा एकेन्द्रियप्रदेशाश्व अनिन्द्रियपदेशाश्च द्विन्द्रियस्य प्रदेशाश्च 'अहवा एगिदिपएसाय अणिदिय परसाय बेइंदियाणय पएमा' अथवा एकेन्द्रियप्रदेशाश्च अनिन्द्रियप्रदेशाश्च द्वीन्द्रियाणां च प्रदेशाः, इह त्रिकमङ्गक इति प्रक्रमः । 'एवं आदिल्लविरहिओ जाव पंचे दियाणं' एव. मादिमविरहितो यावन् पश्चेन्द्रियाणाम् अत्र यावत्पदेन त्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियाणांसंग्रहो भवतोति । आ त्रिक मङ्गक इति प्रक्रमः उपरितनचरमान्तापेक्षया जीव. प्रदेशप्ररूपणायाम् 'आदिल्लविरहिओ' इति यत् कथितम् तस्यायमर्थः अत्र पूर्वोक्तो भङ्गकत्रये प्रदेशापेक्षया 'अहवा एगिदियपएसा य अणिदियपएसा य यह प्रकट किया गया है कि जो वहाँ जीव प्रदेश हैं वे नियम से एकेन्द्रियों के प्रदेश हैं, और अनिन्द्रिय जीवों के प्रदेश है। (एगिदियपएसा य अणिदियपएसाय बेइंदियस्स पएसा य' अथवा वे एकेन्द्रियों के प्रदेश हैं, अनिन्द्रिय जीवों के प्रदेश हैं, और एक द्रीन्द्रिय जीव के प्रदेश हैं। 'अहवो-एगिदियपएसा य, अगिदियपएसाय, बेहदियाण य पएसा य' अथवा वे एकेन्द्रिय जीवों के प्रदेश हैं, अनिन्द्रिय जीवों के प्रदेश हैं और दो बेइन्द्रिय जीवों के प्रदेश हैं । यह निक भंगक का क्रम है। 'एवं आदिल्लविरहिओ जाव पंचेंदियाण' यहाँ यावत्पद से त्रीन्द्रिय, चौहन्द्रिय जीवों का संग्रह हुआ है । यहां उप. रितन चरमान्त की अपेक्षा से जीव प्रदेश की प्ररूपणा में 'आदिल्ल विरहिओ' ऐसा जो कहा गया है उसका यह अर्थ है कि यहां पूर्वोक्त भंगकत्रय में प्रदेश की अपेक्षा से 'अहवा एगिदियपएसा य આવ્યું છે કે ત્યાં જે જીવપ્રદેશ છે. તે નિયમથી એકેન્દ્રિયના પ્રદેશ છે. અને अनन्द्रिय वान प्रदेश से. एगिदियपएसा य अणि दियपएसा य बेइंदियस्स पएसाय' मा त मेन्द्र वान। प्रदेश छ, मनद्रिय वान प्रदेश छ. मन में दीया वान प्रदेश छ 'अहवा एगिदियपरसा य, अणिदियपएसाय वेइंदियाणय पएसा य' मा मेन्द्रिय वने। प्रदेश छ, અનીન્દ્રિય જીવોનો પ્રદેશ છે. અને બે ઈદ્રિયવાળા જેને પ્રદેશ છે આ प्रमाणे सियासी गने। म छे. “एवं आदिल्लविरहिओ जाव पंचे दियाण' અહિયાં યાવત પદથી ત્રણ ઇન્દ્રિયવાળા જીનું ગ્રહણ થયું છે. અહિયાં ७५२न। य२मान्तनी अपेक्षा १-प्रशनी ५३५९मा 'आदिल्लविरहिओ' में પ્રમાણે જે કહેવામાં આવ્યું છે. તેને અર્થ એ છે કે અહિયાં પહેલા કહેલ नयमाप्रशनी मपेक्षा 'अहवा एगिदियपएसा य, अणिदिय पएमा य
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૨