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________________ भगवतीसत्रे अङ्गारकर्षिणी ईषद्वक्राया लोहादिमया यष्टिरित्यर्थः, 'मत्था निव्वत्तिया'-भखा निर्वतिता-मस्त्रानाम चर्मनिर्मितवायुपूरको लोहकाराणामुपकरणविशेषः 'धमण' इति प्रसिद्धा, तेविणं जीवा काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुट्ठा' तेपि खलु जोवाः कायिक्या यावत् पंचभिः क्रियाभिः स्पृष्टाः । अत्र लोहादि पदार्थशरीरजीवानाम् पञ्चक्रियावत्त्वम् अविरतिभावेन ज्ञातव्यम् , यत इमे जीवा अविरतिमंतोऽतः पञ्चक्रियाभिः स्पृष्टा भवन्तीत्यर्थः । 'पुरिसे णं भंते' पुरुषः खलु भदन्त, अयं अयकोटाओ अयोमएणं संडासएणं गहाय' अयः अयःकोष्ठात् अयोमयेन सदंशकेन गृहीत्वा लोइनिर्मितयष्टया ज्वलद् लोहागारात् लोहमादायेत्यर्थः 'अहिकरिणिसि' अधिकरण्याम् 'उक्खिन्त्रमाणे वा निक्खित्रमाणे वा' उत्क्षिपन् हुई है, 'भत्था निवत्तिया' भस्रा-धोंकनी-यनी है, यह धोंकनी चमडे की धनी होती है, इससे लुहार भट्ठी को हवा भरता है। जिससे उसमें अग्नि अधिक चैतन्य हो जाती है 'ते वि णं जीवा काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुट्ठा' ये सब जीव कायिक क्रिया से लेकर प्राणातिपान क्रिया से स्पृष्ट होते हैं । ये लोहादिक पदार्थ वे हैं शरीर से जिनके ऐसे जीवों में जो पंचक्रियावत्ता प्रकट की गई है वह उनके अविरति भाव से प्रकट की गई है ऐसा जानना चाहिये। जिस कारण से ये जीव अविरतिघाले होते हैं इसी कारण से ये पांच कियाओं से स्पृष्ट होते हैं। ___ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'पुरिसे णं भंते! अयं अयकोट्ठाओ आयोमएणं संडासएणं गहाय' हे भदन्त ! जो पुरुष लोहे को लोहकोष्ट से अयोमय संदंशक-संडासी से पकड़ कर-लोहनिर्मित छड-द्वारा (धातुमाने। टु४६) मनी डाय " भत्था निव्वत्तिया' भना- म मनी डाय આ ભસ્ત્રા ચામડાની બનેલી હોય છે અને તેનાથી લુહાર ભઠ્ઠી પેટાવવા હવા भरे है. रथी तमानी मभि पधारे प्रक्षित याय छे. “ ते विण जीषा काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुढा" मा । यी जियाथी धने પ્રાણાતિપાત સુધીની પાંચ ક્રિયાઓથી પૃષ્ટ થાય છે. તે હાદિક પદાર્થ જેના શરીરથી બનેલા હોય એવા જીવોને પાંચ ક્રિયાવત્તા કહિ છે તેમાં અવિરતિ અપચ્ચકખાણ ભાવથી પ્રગટ કરવામાં આવી છે એમ સમજવું જે કારણથી આ જીવ અવિરતિવાળા થાય છે તે જ કારણથી તે પાંચે ક્રિયાએથી પૃષ્ટ થાય છે. व गौतम भी प्रभुने मे छे छे ४-" पुरिसे णं भेजे ! अयं अयकोटाओ अयोमाणं संडास एणं गहाय" 3 स ! २ ५३५ मने बही શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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