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________________ प्रमेयrन्द्रिका टीका श० १६ उ० ८ सू० १ लोकस्वरूनिरूपणम् २६३ प्रमायाः अधस्तनः एवं यावत् अधः सप्तम्याः । एवं सौधर्मस्यापि यावदच्युतस्य ग्रैवेयकविमानानामेवमेव नवरम् उपरितनाधस्तनचरमान्तेषु देशेषु पञ्चेन्द्रियाणामपि तथैव मध्यमविरहित एवं शेषं तथैव । एवं यथा ग्रैवेयकविमानानि तथैव अनुतरविमानान्यपि ईषत् प्रागूमारा अपि ॥०१॥ टीका- ' के महालर गं भंते । लोए पन्नत्ते' किं महालयः कियद्विशाल: खल भदन्त ! लोकः प्रज्ञप्तः । भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा !' हे गौतम ! ' महतिमहालए' महातिमहालयः लोकः खलु गौतम ! प्रमाणेन महान महाविशाल इत्यर्थः । जहा बारसमसए तहेव ' यथैव द्वादशशतके लोकप्रमाणविषये कथितं तथैव सर्वमिहापि अनुसन्धेयम् कियत्पर्यन्तं 4 आठवें उद्देशे का प्रारंभ सातवें उद्देशे में उपयोग के विषय किया गया है। यह उपयोग में लोक विषयक भी होती है । अतः इसी सम्बन्ध को लेकर इस अष्टम उद्देशे में लोक का कथन किया गया है। इस उद्देश का 'के महालएणं भंते! लोए पन्नन्ते' इत्यादि - यह सूत्रसर्व प्रथम सूत्र है- 'के महालए णं भंते ! लोए पन्नन्ते' इत्यादि । टीकार्थ - - ' के महालए णं भंते ! लोए पन्नन्ते' हे भदन्त ! लोक कितना विशाल (बडा) कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा ! महति महालए' हे गौतम! लोकबहुत ही अधिक विशाल (बडा) कहा गया है । 'जहा बारसमसए तहेव' बारहवें शतक में लोक के प्रमाण के આઠમા ઉદ્દેશાના પ્રારભ સાતમાં ઉદ્દેશામાં ઉપયેાગના વિષયમાં વિચાર કરવામાં આવ્યે છે. આ ઉપયાગ લેક વિષયક પણ હૈાય છે. જેથી તે સ ંબધને લઈને આ मामां उद्देशामां प्रथन पुरवामां आव्यु छे. या उद्देशानुं 'के महालएण भंते ! लोए पण्णत्ते' मे पहेलु सूत्र छे. टीडार्थ' - 'के महालएणं भंते ! लोए पण्णत्ते' हे भगवन् ! बोर्ड टो विशाण उडेवामां आव्यो छे तेना उत्तरमा प्रलु उडे छे. } 'गोयमा ! महतिमहालए' डे गौतम बोध विशाल हवामां आव्यो छे. जहा बारसमए तहेव' नेवी रीते मारभां शतम्भां बोउना प्रभाणुना विषयभां पडेसां શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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