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________________ २१२ भगवतीसूत्र 'गोयमा !' हे गौतम ! 'बलदेवमायरो जाव' बलदेवमातरो यावत् अत्र यावत्पदेन 'णं बलदेवंसि गम्भं वक्कममाणसि' इत्यन्तस्य ग्रहणं तथा च बलदेव मातरः खलु बलदेवे गर्भ व्युत्क्रामति सतीत्यर्थः संपद्यते 'एएसि चोहसण्डं महासुविणाणं अन्नयरे चत्तारि महासुविणे पासित्ता णं पडिबुझंति' एतेषां चतुर्द शानां महास्वप्ननाम् अन्यतरान् चतुरो महास्वप्नान् दृष्ट्वा प्रतिबुद्धयन्ते । 'मंडलियमायरो णं भंते पुच्छा' माण्ड लिकमातरः खलु भदन्त ! इति पृच्छा पूर्ववत् प्रश्नः 'मंडलियंसि गभं बकपमाणंसि कइ महासुविणे पासित्ता गं पडिबुझंति' होती है ? इसके उत्तर में प्रभुने कहा-'गोयमा! बलदेवमायरो जाव' हे गौतम ! बलदेव की माता जब बलदेव उनके गर्भ में आ जाते हैंतब इन १४ महास्वप्नों में से किन्हीं ४ महास्वप्नों को देखकर प्रतिबुद्ध होती है। यहां यावत्पद से 'णं बलदेवंसि गम्भवक्कममाणंसि' यहां तक का पाठ संगृहीत हुआ है । तथा च यह आलापक इस प्रकार से बताकर उत्तररूप में कहना चाहिये-'बलदेवमायरो णं बलदेवंसिगम्भवक्कममाणंसि एएसिं चोद्दसण्हं महासुविणाणं अन्नयरे चत्तारि महासुविणे पासित्ता णं पडिबुज्झति' अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'मंडलियमायरो णं भते ! पुच्छा' यहाँ पर भी 'पुच्छा' शब्द से 'मंडलियंसि गम्भं वक्कममाणंसि कह महासुविणे पासित्ताणं पडिबुज्झति' इस पाठ का संग्रह हुआ हैतथा-च-हे भदन्त ! जब मांडलिक राजा अपनी माता के गर्भ में आता है तब उसकी माता कितने महास्वप्नों को देखकर प्रतिबुद्ध अथात् ज नय १ तेना उत्तरमा प्रभु छ है 'गोयमा बलदेलमायरो जाव' 3 गौतम ! भगवनी माता न्यारे महेव तमना मा आवे छे ત્યારે આ ચૌદ મહાસ્વપ્ન પૈકીના ચાર મહાવા જાઈને પ્રતિ બુદ્ધ થાય छ. मे Moll 1य छे. माडिया यावत्' ५४थी ‘णं बलदेवंसी गम पक्कममाणंसि' मा सुधान। 8। सड थय। छे. मन मा ५४ નીચે પ્રમાણે બતાવીને ઉત્તર રૂપે સૂત્રમાં કહેવું જોઈએ તે આલાપક આ प्रमाणे छे. 'बलदेव मायरो णं बलदेवसि गब्भ' वक्कममामि चोदसण्हं महा. सुविणाणं अन्नयरे चत्तारि महासुविणे पासित्ता णं पडिबुज्झति !' वे गौतम स्वामी प्रभुने मे पूछे छे , 'मंडलियमायरोणं भंते ! पुच्छा' मा पर ५ 'पुच्छा' से थी 'मंडलियसि गम्भं वक्कममाणंसि कह महासुविणे पासित्ता णं पडिबुज्झति' मा पाइने। स थये। छे. तेना अथ मा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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