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________________ भगवतीसरे गादत्तस्य खलु भदन्त ! देवस्य 'केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता' कियस्कालं देवलोके स्थितिः प्रज्ञप्ता कथितेति भगवानाह-'गोयमा' हे गौतम ! 'सत्तरससागरोवमाई ठिई पन्नत्ता' सप्तदशसागरोपमा स्थितिः प्रज्ञप्ता सप्तदशसागरोपमा तत्र सप्तमे देवलोके स्थितिर्भविष्यतीति भावः। 'गंगदत्ते णं भंते ! देवे' गङ्गदत्तः खलु भदन्त ! देवः 'ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं' तस्माद् देवलोकाद् आयुः क्षयेण 'जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहिई' यावद् महाविदेहे वर्षे सेत्स्यति, अत्र यावत्पदेन 'भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिइ कहिं उपज्जिहिइ गोयमा !' इति सङ्ग्रहः 'जाव अंतं काहिइ' यावदंत करिष्यति, पन्नत्ता' स्थिति कितने काल की कही गई है। उत्तर में प्रभु कहते हैं'गोयमा!' हे गौतम ! 'सत्तरससागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता' हे गौतम ! गंगदत्त देव की देवलोक में १७ सागरोपमकी स्थिति कही गई है क्योंकि सातवें महाशुक्रकल्प में यही उत्कृष्ट स्थिति कही गई है। 'गंगदत्ते णं भंते ! देवे ताओ देवलोगाओ आउखएण' यहां अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछ रहे हैं कि हे भदन्त ! देवलोक में जय गंगदत्त देव की आयु का क्षय हो जावेगा, तब वह वहां से चवकर कहां जावेगा ? कहां उत्पन्न होगा ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'जाव महाविदेहे वासे सिज्जिहिह' हे गौतम! यावत् वह महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होगा। यहां यावत् पद से 'भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतर चयं चहत्ता कहिं गच्छहिइ? कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा!' यह पाठ गृहीत हुआ है। इसका तात्पर्य ऐसा है कि गौतम ने प्रभु से पन किया है३८६॥ ४॥ सुधानी स्थिति ही छ. तन। उत्तरमा प्रभु छ है “ गोयमा!" गौतम ! " सत्तरससागरोवमाई ठिई पण्णत्ता" गौतम ! आत्त देवना મહાશુક્ર દેવલેકમાં ૧૭ સાગરોપમની સ્થિતિ કહી છે. કેમકે સાતમાં महाशु ४६५मां से ट स्थिति ही छ. " गंगदत्ते ण भंते ! देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं" गौतमस्वामी प्रभुन मे प्रमाणे पूछे छे । ભગવનદેવલેકમાં જયારે ગંગદત્ત દેવની આયુનો- ક્ષય દેવભવને ક્ષય થશે ત્યારે તે ત્યાંથી ચવીને કયાં જશે? ત્યાંથી ચવીને કયાં ઉત્પન્ન થશે? તેના ઉત્તરમાં प्रभु ४ छ “जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ" गौतम! यातू तो भलाવિદેહ ક્ષેત્રમાં સિદ્ધ થશે, બુદ્ધ થશે અને મુક્ત થશે. અહિયાં યાવત્ પદથી "भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतर चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ गोयमा !" मा पानी सड थयो छे. तना मा से छे । गौतम શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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