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मगवतीसूत्रे करोति श्रमणस्तादृशं कर्म महता कालेन अति कष्टेनापि नारकाः विनाशयितुं समर्थाः कथं न भवन्तीति पूर्वपक्षस्य भावः । ननु कथमिदं प्रत्याय्यं यत् नारको महाष्टं प्राप्तो महता कालेनापि तावत्कर्म न क्षपयति यावत् श्रमणोऽल्पकालेन अल्पकण्टेन क्षपयति ? इमां शंकामपनेतुं दृष्टान्तद्वारेण भगवानाह-'गोयमा !' इत्यादिना 'गोयमा' हे गौतम ! दृष्टान्तमेव दर्शयति 'से जहा नामए' इत्यादि, 'से जहा नामए' तद्यथा नामकः 'केइ पुरिसे' कश्चित् पुरुषः 'जुन्ने' जीर्णः अतिकृश इत्यर्थः ननु जीर्णत्वं ज्वरादिवशात् वृद्धाभावेऽपि स्यात् तबाह-'जरा जज्जा रिय देई' जराजर्जरित देहः-जरया-वृद्धावस्थया जर्जरितो जर्जरीभूतो देहो यस्य ग्रहण कर लेना चाहिये पूछने का तात्पर्य ऐसा है-अल्पकष्ट सहन करके भी जैसे कर्मों की-जितने कर्मों का नाश श्रमण निग्रंथ करता है, इतने कर्मों का विनाश बहुत अधिक काल में भी अधिक कष्ट सहनेवाले नारक जीव क्यों नहीं कर पाते हैं ? इसका उत्तर दृष्टान्त से देते हुए प्रभु कहते हैं-'गोधमा ! 'हे गौतम ! 'से जहा नामए केइ पुरिसे जुण्णे, जराजज्जरियदेहे, सिढिलतयावलितरंगसंपिणद्धगत्ते' जैसे कोई एक पुरुष हो वह जीर्ण-अतिकृशितशरीरवाला हो, यह कृशता उसमें ज्वरादिके वश से नहीं आई हो किन्तु, जरा के वश से ही आई हो, क्योंकि जरा के वश से जो कृशता आती है, यह जरा से जर्जरित शरीर के हो जाने से ही आती है ज्वरादि के वश से आई हुई कृशता तो धीरे २ दूर भी हो जाती है, परन्तु जरा से आई हुई कृशता किसी प्रकार दूर नहीं होती है। इसी बात को प्रकट करने के लिये यहां 'जरा जज्जरियदेहे' ऐसा पद कहा है और जरा से जर्ज
એ છે કે થોડું કષ્ટ સહન કરીને પણ જેટલા કર્મોની નિર્જરા થોડા સમયમાં શ્રમણ નિથ કરે છે. એટલા કર્મોની નિર્જરા ઘણું અધિક કાળમાં અધિકથી અધિક કષ્ટ સહન કરવાવાળા નારક જીવ કેમ કરી શકતા નથી? આને उत्तर २१ मापीर प्रभु ४३ छे “गोयमा !" उ गीतम! " से जहा नामए के पुरिसे जुम्मे, जराजज्जरियदेहे, सिढिलतयावलितरंग संपिणद्धगत्ते" म अत्यंत दु शरीरवाणे ५३५ य म ते दुमnal તેનામાં કેઈ જવરાદિ રોગને કારણે આવી ન હોય પરંતુ વૃદ્ધાવસ્થા ને કારણે જ આવી હોય કેમકે વૃદ્ધત્વને કારણે જે કૃશતા (દુર્બળતા) આવે છે, તે શરીરના જર્જરીત થવાના કારણે આવે છે. અને જવરાદિના કારણે જે કૃશતા આવે છે તે તે ધીરે ધીરે દૂર પણ થઈ જાય છે. પરંત વૃદ્ધત્વને કારણે આવેલી કૃશતા કેઈ પણ પ્રકારે દૂર થઈ શકતી નથી स०४ वात मतावान भाटे महिया "जरा जज्जरियदेहे" से प्रभानु
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૨