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________________ - ८७४ भगवतीसूत्रे पृथिवीकायिकेषु उत्पत्स्यते इति भावः, 'सनस्थ विणं सस्थवज्झे जाव किच्चा रायगिहे नयरे चाहिं खरियत्तार उपवजिहिइ' सर्वत्रापि खलु शखवध्यः-शस्त्रवैधाहः सन् याचा दाहव्युत्क्रान्त्या-दाहोत्पत्या कालमासे कालं कृत्वा राजगृहे नगरे वहिःपदेशे वेश्यात्वेन नगरबाहित्ति वेश्यात्वेन उत्पत्स्यते, 'तत्थ वि गं सत्यवज्झे जाव किच्चा दुच्चेपि रायगिहे नगरे अंतो खरियत्ताए उववन्जिहिइ' तत्रापि खलु-राजगृहनगरबहिर्वत्तिवेश्याभवे शस्त्रवध्यः सन् यावत्दाहव्युत्क्रान्ता-द हपीडोत्पत्या कालमासे कालं कृत्वा द्वितीयमपि वारम् राजगृहे नगरे अन्तःवेश्यात्वेन नगरान्तर्वतिवेश्यात्वेन उत्पत्स्यते ॥ सू० २२ ॥ __मूलम्-'तत्थ वि णं सत्थवज्झे जाव किच्चा इहेब जंबुद्दीवे दीवे भारहेवासे विंझगिरिपायमूले बेभेले सन्निवेसे माहणकुलंसि दारियत्ताए पच्चायाहिइ। तए णं तं दारियं अम्मापियरो उम्मुक्कबालभावं जोव्वणगमणुपत्तं पडिरूवएणं सुक्केणं पडिरूविएणं विणएणं पडिरूवियस्त भत्तारस्स भारियत्ताए दलकायिकों में उत्पन्न होगा। 'मव्यत्य वि णं सत्थवज्झे जीव किच्चा. रायगिहे नयरे बाहिं खरियताए उववजिहिई' यहां पर भी यह शस्त्रवध्य होता हुआ यावत् दाह की व्युत्क्रान्ति से कालमास में काल करके राजगृह नगर में उसके बहिः प्रदेश में वेश्या के रूप से उत्पन्न होगा। 'तत्थ विणं सत्यवझे जाव किच्चा दोच्चपि रायगिहे नघरे अंतो खरियताए उवअज्जिहिइ' उसस्थिति में भी यह शस्त्रों से वध्य होता हुआ दाइ की उत्पत्ति से कालमास में काल करके द्वितीयवार भी यह उसी राजगृह नगर में भीतर में वेश्यारूप से उत्पन्न होगा।सू० २२ ॥ यिमा पनि . “ सव्वत्थ विण' मत्थवज्झे जाव किच्चा रायगिहे नयरे बाहिं खरियत्ताए उववजिहिइ" ! पृथ्वीयि सवमा ७१ शसध्य થઈને દાહનીપત્તિથી કાળને અવસર આવતા કાળ કરીને રાજગૃહ નગરની मारना प्रदेशमा वेश्या३३ ५ थरी, " तत्व विण मत्थवज्झे जाव किच्चा दोचंपि रायगिहे नयरे अंतो खरियत्ताए उववज्जिहिइ" वेश्याना सभा ५९५ તે જીવ શસ્ત્રો વડે વધ થઈને દાહની ઉત્પત્તિથી કાળને અવસર આવતા કાળધર્મ પામીને બીજી વાર પણ એજ રાજગૃહ નગરમાં વેશ્યા રૂપે उत्पन्न थरी. ॥सू०२२॥ શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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