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________________ ७८२ भगवतीसूत्रे "तात्स्थ्यात्तथैव ताद्धात् तत्सामीप्यात्तथैव च।। तत्साहचर्यात् तादात् ज्ञेया वै लक्षणा बुधैः" इति, यथा तात-सिंहो माणवका, गौर्वाहीक इत्यादि स्थले सिंहगोशब्दादीनां माणवकाहीकादिषु लक्षणा भवति, माणवकवाहीकादिषु क्रमशः सिंहगवादिवृत्तिपराक्रमनाड्यमान्धादि धर्मसत्यातू , तथैव प्रकृतेऽपि कूष्माण्डकफले कपोत. शरीरवृत्तिधूसरवर्णवत्त्वात् कपोतशरीरशब्दस्य तदर्थे लक्षणा भवति, लक्षणाया अपि शब्दवृत्तित्वेन तयाऽपि लक्ष्यार्थबोधो भवत्येव, लक्षणावृत्तेरपि अनेकानि उदाहरणानि सन्ति यथा-'गङ्गायां घोपः' मञ्चाः क्रोशन्ति, यष्टीः प्रवेशय, गौर्वाकूष्माण्डफल में है । ऐसा जानना चाहिये-सो ही कहा है'तास्थ्यात्तथैव' इत्यादि । ताधर्म्य से लक्षणा इस प्रकार से होती है-जैसे-'सिंहो माणवकः' 'गौर्वाहीकः इत्यादि स्थलोंमें सिंह, गोशब्द आदि को की लक्षणा माण. वक (बालक) वाहीक आदिकों में होती है क्योंकि माणवकवाहीक आदिकों में क्रमशः सिंह गवादिकों में रहा हुआ पराक्रम, जाडय, मान्ध आदि धर्मों का सद्भाव पाया जाता है। उसी प्रकार प्रकृत में भी कुष्माण्डफल में, कपोतशरीर में रहा हुआ जो घूसर वर्ण है उसका सद्भारपाया जाता है। इसलिये कपोतशरीर शब्द की लक्षणा कूष्माण्ड फल में होती हैं लक्षणा द्वारा भी शब्दवृत्ति होने से लक्ष्यार्थ का बोध होता ही है । लक्षणावृत्ति के भी अनेक उदाहरण हैं-जैसे-'गङ्गाया. घोष' 'मञ्चाक्रोशन्ति, यष्टीः प्रवेशय, गौर्वाहीका, काकेभ्यो दधि, रक्ष्य. साथै aayi अपेक्षा में समानता २७सी छ. 3ह्यु पशु छ -" तात्स्थ्यात्तथैव "त्याहि ताभ्यः (साधभ्य) द्वारा क्षय मा घरे थाय छ भ"सिंहो माणवकः " " गौर्वाहीक" यायोमा सिडसोशल આદિકની લક્ષણા માણવક (બાલક) વાહક આદિકોમાં થાય છે, કારણ કે भायपाही माहिम मश: सिंह, मां २ढा ५२।भउय, માન્ય આદિ ધર્મોને સદ્દભાવ જોવામાં આવે છે. એ જ પ્રમાણે પ્રસ્તુત ફૂ માંડક ફલમાં, કપાતશરીરમાં રહેલે જે ધૂસર વર્ણ છે, તેને સદ્દભાવ જેવામાં આવે છે. તે કારણે કપતશરીર શબ્દની લક્ષણ કૂષ્માંડક ફળમાં હોય છે. લક્ષણ દ્વારા પણ શબ્દવૃત્તિ હોવાથી લક્ષ્યાર્થીને બોધ થાય છે જ सात्तिनां ५५ अने: SS२५. भ-"गंगायां घोषः" "मवाको શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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