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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १५ उ० १ सू० १९ रेवतीदानसमीक्षा ७७१ कतया संदिग्धत्वात् , किन्तु तदर्थनिर्णयार्थ प्रकरणादिकमपेक्ष्यते-यदि भोजनप्रकरणं विद्यते तदा तत्प्रकरणेन सैन्धवशब्दस्य लवणार्थों भवति, यदा तु यात्रा प्रकरणं वर्तते तदा तद्बलेन तस्य अश्वार्थों भवति, एवमेव आयुर्वेदशास्त्रे 'कुमारी कन्यां भक्षय' इति कचिद् वाक्यं श्रूयते परन्तु तत्र कुमारीकन्या पदेन न से ही सैन्धव शब्द का प्रसिद्ध अर्थ जो लवणनामक है वह ग्रहण करलिया जायगा ? ऐसा नहीं होता है-केवल सैन्धव शब्द के प्रयोग से ही सैन्धव शब्द का प्रसिद्ध अर्थ निणित नहीं हो जाता है । क्यों कि यह शब्द लवण और अश्व इन अर्थों का वाचक है । अतः केवल सैन्धव शब्द के प्रयोग से यह संदेह सुननेवाले व्यक्तिको संदेह अवश्य हो जाता है कि यह घोडेरूप अर्थ को कह रहा है, या लवणरूप अर्थ को कह रहा है ? तब उस व्यक्ति के संदेह की निवृत्ति प्रकरणादिक को लेकर दूर की जाती है । यदि भोजन का अवसर है और उस समय 'सैन्धवमानय, ऐसा कहा गया है तो वहां सैन्धवपद से नमकरूप अर्थ की उपस्थिति मानी जावेगी। घोडेरूप अर्थ की नहीं क्योंकि उस समय उसका कोई प्रकरण या अवसर नहीं है। हां, जिस समय यात्राकहीं जाने का प्रकरण होता है उस समय 'सैन्धवमानय' इस प्रकार के कथन से घोडारूप अर्थ सन्धव पद का लिया जावेगा। क्योंकि उस समय वही उपयोगी है-नमक-लवण नहीं। इसी प्रकार आयुर्वेसिप साव" सैन्धव" मा ५४ प्रसिद्ध म सिन्धानुष मया भाई छ. शुमा २० तेनी “सिधायुष्य साव," मा म घर ४२१" सैन्धव" मा पहना भर अथ "4" पर थाय छे. तथा આ વાકયને બીજો અર્થ આ પ્રમાણે પણ થઈ શકે છે. “ઘડે લાવો ” मा शहना सथ “ eqg" व " " सभव, तनी કરતી વખતે શ્રોતા વ્યક્તિ પરિસ્થિતિ, અવસર, વાતાવરણ આદિને વિચાર કરે છે. ધારો કે જમવા માટે કેઈ વ્યક્તિ બેઠેલી છે, તે આ પ્રમાણે કહે छ. “सैन्धवमानय" त्यारे श्रोता “सैन्धव " मा पहन। " eng" જ સમજશે, જમતી વખતે ઘોડાનું કેઈ પ્રજન સંભવી શકે જ નહીં. પરત કઈ વ્યકિત બહાર જવાને માટે તૈયાર થયેલ છે, અને કેાઈને કહે छ , "सैन्धवमानय ", त्यारे सामना२ व्यति “सैन्धव" मा पहना અર્થ “ઘડે” જ સમજીને, ઘડો લઈ આવશે. આ રીતે અવસર અથવા પરિસ્થિતિ શબ્દના અર્થને નિર્ણય કરાવવામાં મદદ રૂપ બને છે. એજ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧