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________________ ७६८ भगवती सूत्रे रस्य तमाहारं पूर्वोक्तवीजपूरकाहारम् आहारितस्य सतः स विपुल:- प्रचुरो रोगातङ्कः क्षिप्रमेव उपशमं - शान्तिम् प्राप्तः, 'हट्ठे जाए आरोग्गे बलि यसरीरे' हृष्टो जातः, आरोग्यः- निरोगः, बलिकशरीरः जातः-संजातः 'तुट्टा समणा, तुट्टाओ समणी तुट्ठा सावया तुट्टाओ सावियाओ' तुष्टाः श्रमणाः तुष्टाः श्रमण्यः तुष्टाः श्रावकाः, तुष्टाः श्राविकाः संजाताः, 'तुट्ठा देवा तुझाओ देवीओ सदेवमणुयासुरे लोए तुट्ठे हट्ठे जाए समणे भगवं महावीरे हट्ट ट्ठे, समणे भगवं महावीरे हट्ठ तुट्ठे' तुष्टाः देवाः, तुष्टाः देव्यः सदेवमनुष्यासुरः- देवमनुष्यासुरसहितो लोकस्तुष्टः,, हृष्टो जातः " श्रनगो भगवान् महावीरो हृष्ट तुष्टः संजातः, श्रमणो भगवान् महावीरो हृष्ट तुष्टः संजातः ।" इति विवार्य सर्वे हृष्टतुष्टाः जाताः इति भावः । सू० १९ ॥ , रोगात उस आहार के बीजपूरक के लेने से खाने से शीघ्र ही शान्ति को प्राप्त हो गया । 'हट्ठे जाए, अरोग्गे, बलियसरी रे' वे हृष्ट हो गये, निरोग रोगरहित हो गए, बलिष्ठ शरीर हो गये। 'तुट्ठा समणा, तुट्टाओ समणीओ तुट्ठा सावधा, तुट्ठाओ सावियाओ' इससे श्रमण तुष्ट हुए, श्रमणियाँ तुष्ट हुई, श्रावक तुष्ट हुए श्रावि. काएँ तुष्ट हुई। 'तुहा देवा, तुट्ठाओ देवीओ, सदेवमणुयासुरे लोए तुट्ठे हट्ठे जाए, समणे भगवं महावीरे हट्टतुट्ठे समणे भगवं महावीरे हडतुडे' देव तुष्ट हुए, देवियां तुष्ट हुई, देव, मनुष्य असुर सहित यह लोक तुष्ट हुआ | ज्यादा क्या कहें- श्रमण भगवान महावीर हृष्टतुष्ट हो गये हैं, श्रमण भगवान महावीर हृष्टतुष्ट हो गये हैं। ऐसा विचार कर सब ही हृष्ट और तुष्ट हुए ॥ सू० १९ ॥ 66 तुट्ठा समणा, महावीर अलुना ते શ્રમણી એને સંતેષ ખોરાપાકનું સેવન કરવાથી, શ્રમણુ ભગવાન મહાવીરને તે વિપુલ રાગાંતક तुरंत ४ शभी गये. " 'हट्ठे जाए, अरोगे, बलियसरीरे " हृष्ट थर्ध गया, નીરાગી થઈ ગયા અને અલિષ્ઠ શરીરવાળા થઈ ગયા. तुट्टाओ समणीओ तुहा सावया, तुट्ठाओ स्वावियाओं " વિપુલ રોગ દૂર થઈ જવાથી શ્રમણેને સતાષ થયા, थयो, श्रावाने सतोष थयो, श्रविभागने सतोष थये!, “तुट्ठा देवा, तुट्ठाओ देवीओ, सदेवमयासुरे लोए तुट्ठे हट्ठे जाए समणे भगव महावीरे हट्टे तुट्टे, समणे भगवं महावीरे हट्टतुट्ठे " हेवाने संतोष थयो, हेवीखने, सतोष थयो, हेव, મનુષ્ય અસુરયુકત આ લાક તુષ્ટ થયે, વધુ શું કહું.- ક્ષમણુ ભગવાન મહાવીર હઋતુષ્ટ થઈ ગયા છે, શ્રમણ ભગવાન મહાવીર હુંતુષ્ટ થઈ ગયા छे, " सेवा विचार उरीने सौ हृष्टतुष्ट थह गया. માસ્॰૧૯૫ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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