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भगवतीसूत्रे ते च ते शरीरे वनस्पतिजीवदेहत्वात् कपोतकशरीरे, अथवा कपोतकशरीरे इव धूसरवर्णसादृश्यादेव कपोतकशरीरे-कूष्माण्डकफले एव ते उपसंस्कृते-संस्कारयुक्ते कृते वर्तते, ताभ्यां नो अर्थ:-नास्ति मम प्रयोजनम् , तयोः आधाकर्मदोष दक्षितत्वेनाऽग्राह्यत्वात् , अपितु 'अस्थि से अन्ने परियासिए मज्जारकडए कुक्कुडमंसए , तमाहराहि एए णं अट्ठो' अस्ति तद् अन्यत् पारिवासितम्-गतदिनसम्पादित मार्जारकृत-मार्जारो वायुविशेषस्तदुपशमनाय कृतं संस्कृतं मार्जारकृतम् अथवा माजोरो-वायुविशेषस्तं कृन्तति-छिनत्तीति मार्जारकृतं मार्जारवायुविनाशक तक से ग्रहण किये गये हैं-कबूतररूप पक्षिविशेष नहीं ये छोटे फल. विशेष कूष्माण्ड-भूराकूमडा हैं जिन्हें पेठा कहते हैं । इनका वर्ण कबूतर जैसा होता है । इसी वर्ण सादृश्य को लेकर यहां कपोतक शब्द से इन्हें ग्रहण किया गया है। ये वनस्पतिकायिक जीव देहरूप होने के कारण 'कपोतशरीर' इसरूप से कहे गये हैं अथवा-कपोतक शरीर के जैता धूसर वर्ण की सादृशता से ही दो कपोतक शरीरदो कूष्माण्ड कफल उपस्कृत-संस्कारयुक्त किये हुए हैं-सो इनसे मेरा कोई प्रयोजन नहीं है, क्योंकि ये आधाकर्मदोष से दूषित होने के कारण अग्राह्य हैं। 'अस्थि से अन्ने परियासिए मज्जारकडए कुक्कुडमं. सए, तमाहराहि' किन्तु उसने गतदिवस कुकुटमांस बोजपूरक-बिजौरा का गूदा पकाया है, संस्कृत किया है सो उसे ले आओ यहां 'मज्जारकडए' मार्जारकृत शब्द का अर्थ 'मार्जार नामक वायु को शमन करने के लिये संस्कृत हुआ ऐसा हैं । अथवा मारिवायु का विनाशक ऐसा કબૂતર રૂપ પક્ષીવિશેષને પકવવાની વાત અહીં માનવી જોઈએ નહીં આ नान. विशेष "कृठमाण्ड” भू भय।।२२।२ नाम प्रसिद्ध છે તેને રંગ કબૂતર જે હોય છે. આ પ્રકારે રંગની સમાનતાને લીધે અહીં “કતિક પાઠ દ્વારા તે ફવિશેષને ગ્રહણ કરવામાં આવ્યું છે, એમ સમજવું અથવા કપત શરીરની જેવાં જ બે ભૂરા રંગના કૃમાંડક ફલે રેવતીએ સંસ્કારયુકત કર્યા છે–રાંધીને તૈયાર કર્યા છે-તેને પાક બનાવ્યો છે. તેને મારે કોઈ પ્રોજન નથી, કારણ કે તે આધાકમ દેષથી દુષિત डावान रणे मारे भाट मप्य छे. " अस्थि से अन्ने परियासिए मज्जारकडर कुक्कुडमसए, तमाहराहि" ५२न्तु ते थे। हिस ५७i दुरभासબીજપૂરક-બિજોરાપાક બનાવ્યું છે, તે તમે તે વહેરી લાવે. અહીં " मज्जारकडए" 'भारत' मा शपहने। अर्थ "भा २ नमना पायुन શમન કરવાને માટે સંસ્કૃત કરેલે તૈયાર કરે)” થાય છે. અથવા તે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧