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________________ भगवतीसरे गच्छन्ति 'उवागच्छित्ता सीहं अणगारं एवं वयाप्ती' उपागत्य, सिंहम् अनगारम् , एवं-वक्ष्यमाणपकारेण अवादिषुः-'सीहा ! धम्मायरिया सदावेंति' भो सिंह ! अनगार ! धर्माचार्याः भगवन्तो महावीराः त्वां शब्दयन्ति आवयन्ति 'तए णं से सीहे अणगारे समणेहिं निग्गंथेहिं सद्धि मालुयाकच्छ गाओ पडि निक्खमइ' ततः खलु स सिंहः अनगारः श्रमणैः निर्ग्रन्थैः साईम् मालुकाकक्षकात्-मालुकावनात् प्रतिनिष्कामति-निर्गच्छति, 'पडिनिकरवमित्ता जेणेव सालकोटए चेइए जेणेव सपणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छई' प्रतिनिष्क्रम्य-निर्गत्य यत्रैव शालक्रोष्ठक चैत्यमामीत् यत्रैव श्रमणो भगवान् महावीर आसीत् , तत्रैव उपागच्छति, 'उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ' उपागत्य श्रमणं भगवन्तं महावीरं त्रिकृस्का-त्रिवारम् आदक्षिण प्रदक्षिणं करोति, 'करित्ता जाव पज्जुवासइ' कृत्या, यावत्-विनयेन शुश्रूषमाणः प्राञ्जलिपुरः पर्युपास्ते, थे वहां गये । 'उवागच्छित्ता सीहं अणगारं एवं वयासी' वहां जाकर के उन्होंने सिंह अनगार से ऐसा कहा सीहा ! धम्मायरिया सदावे ति' हे सिंह! तुम्हें धर्माचार्य भगवान महावीर ने बुलाया है । 'तए णं से सीहे अणगारे समणेहिं निग्गंथेहिं सद्धिं मालुयाकच्छगाओ पडिनिक्खमई' तब वे सिंह अनगार श्रमण निर्ग्रन्थों के साथ ही उस मालुका कक्ष से निकले। 'पडिनिक्खमित्ता जेणेष सालकोट्ठए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छई' निकल कर वे जहां शालकोष्ठ चैत्य था आर उसमें भी जहां श्रमण भगवान महावीर थे वहां आये । 'उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिखुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ' वहां आकर के उन्होंने श्रमण भगवान महावीर को तीन वार आदक्षिण प्रदक्षिण किया करित्ता जाव पज्जुवासई' आदक्षिणा प्रदक्षिणा करके यावत् " स्वागन्छिता सीह अणगारं एवं वयासी" त्यां न तो मिल भणभारने 241 प्रमाणे ४हु-" सीहा, धम्मायरिया सदावेति" सि! तभन यायाय महावीर भगवान मानावे छे. "तए ण से सीहे अणगारे समणेहि निग्गथेहिं सद्धिं मालुयाकच्छगाओ पडिनिक्खमइ” त्यारे ते सिड भारते श्रम नियानी साथे ५ भाक्ष बनमाथी महा२ नय. “पडि. निक्खमित्ता जेणेव सालकोदुए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ" त्यांथा नाजीने तसा शास18 येत्यमा भावानन्यां श्रमण लगवान महावीर विशता उता, त्यां पायी गया. " उवागच्छित्ता समणं भगव महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करे इ" त्यांनभए श्रम सगवान् महावीरने त्र पा२ माक्षिय प्रक्षिष्य यु. "करित्ता जाव पज्जु શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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