SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 760
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - ७४६ भगवतीसूत्रे कृष्णावभासम्-श्यामकान्तियुक्तं, यावन्-महामेघनिकुरम्पभूतम्-नीलमेघघटा सहशम् , पत्रितम्-पल्लवितम् , पुष्पितम् , फलितम् हरितकराराज्यमानम्-हरित वर्णेन देदीप्यमानम् , श्रिया-वनशोभया, अतीव अतीव उपशोभमानम् तिष्ठति, 'तत्थ णं में ढियगामे नयरे रेवई नाम गाहावइणी परिवसह, अड्रा जाव अपरिभूया' तत्र खल्लु मेण्डिकग्रामे नगरे रेवती नाम गाथापत्नी गृहस्वामिनी, परिवसति, सा रेवती गाथापत्नी आढया यात् दीप्ता, बहुजनस्य अपरिभूता-अपराजिता आसीत् , 'तर णं समणे भावं महावीरे अन्नया कयाई पुवाणुपुब्धि चरमाणे सिरीए अईव २ उवलोभेमाणे चिद' यह वन सघन होने के कारण काला काला दिखता था, कान्ति भी इसकी काली काली थी, इससे ऐसा ज्ञात होता था कि मानो यह नील मेघ की घटा ही चढी है। यह वन पत्र एवं पुरुषों से सुशोभित था। फल के विना का एक भी वृक्ष यहाँ नहीं था-प्रत्येक वृक्ष अपने हरितवर्ण से बडा सुहावना लगता थाचारों ओर इस वन में हरियाली हरियाली छा रही थी। इस प्रकार यह चन अपनी शोभा से बहुत बहुतरूप में सुहावना बना हुआ था। 'तत्य णं मेंढियगामे नयरे रेवई नामं गाहवाणी परिवसई' इस मेंटिकग्राम नगर में गाथापत्नी रहती थी जिसका नाम रेवती था । यह 'अडा जाव अपरिभूया' धन में बहुत चढी बढी थी। लोगों में इसकी अच्छी प्रतिष्ठा थी किसी में भी ऐसा शक्ति नहीं थी, जो इसका रंच मात्र भी पराभव कर सके। यहां यावत् पद से 'दीसा' इस पद का ग्रहण हरियगरेरिज्जमाणे सिरीए अईव२ अवसोभेमाणे चिदुइ" ते वन अबन जापान કારણે કાળું કાળું દેખાતું હતું અને તેની કાન્તિ પણ કાળી કાળી હતી. તે કારણે જાણે નીલવર્ણન મેઘની ઘટા ચઢી આવી હોય એવું લાગતું હતું. તે વન પર્ણ અને પુષ્પ વડે સુભિત હતું. તે વનનું એક પણ વૃક્ષ ફલે વિનાનું ન હતું. ત્યાં પ્રત્યેક વૃક્ષ પિતાના હરિત (લીલા) વર્ણથી સુશોભિત લાગતું હતું. તે વનમાં ચારે તરફ હરિયાળી છવાઈ ગઈ હતી. આ પ્રકારની પિતાની શોભાને લીધે તે વન અતિશય રમણીય અને દર્શનીય લાગતું હતું. तत्थ ण में ढियगामे नयरे रेवई नाम गाहावणी परिवसइ" मा મેંઢિગામ નગકમાં એક ગાથાપત્ની (ગૃહસ્થની પત્ની) રહેતી હતી, જેનું नाम रेवती . “ अट्टा जाव अपरिभूया" ते घी बनाढ्य ती, લોકેમાં તેની ઘણી જ સારી પ્રતિષ્ઠા હતી અને તેને પરાભવ કરવાને કઈ समथ न तु. सही " यावत्" ५४ पडे " दीप्ता" होता ५६ अहए ४२वामा શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy