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भगवतीसूने एतदेवातश्चनिकोदकमपि कथ्यते आतपेन-सूयंतापेन तप्तम्-आतपतप्तमुच्यते, शिलायाः प्रभ्रष्टकम्-पतितं शिलामभ्रष्टकमुच्यते, “से किं तं अपाणए ?' अथ, किं तत् नमुच्यते ? 'अपागए चउनिहे पण्णत्ते' अपानकम् चतुर्विध प्रज्ञ
तम् 'तं जहा-थालपाणए, तयापाणए, सिंबलिपाणए, सुद्धपाणए' तद्यथास्थालपानकम् , त्वरूपानकम् , सिम्बलीपानकम् , शुद्धपानकम् । 'से किं तं थाळ. पाणए ?' अथ, किं तत् स्थालपानकमुच्यते ? 'थालपाणए जे णं दाथालगे वा, दावारगं वा, दाकुंभगं वा, दाकल वा, सीयलग उल्लगं हत्थेहि परामुसइ, न य पाणियं पियइ, से तं थालपाणए' स्थालशनकं यत् खलु उदकस्थालकं वा मसला गया-मर्दित किया हुआ जो पानक है वह हस्तमर्दित पानक है। इसका दूसरा नाम आतश्चनिकोदक भी है। सूर्य के ताप से तपा हुआ जो पानक है वह आतपतप्त पानक है। जो पानक शिला से नीचे गिरा होता है वह शिलाप्रभ्रष्ट पानक है 'से कि तं अपाणए' वह अपानक क्या है ? अर्थात् अपानक का क्या स्वरूप है ? तो इसका उत्तर यह है कि-'अपाणए चयिहे पण्णत्ते' अपानक चार प्रकार का कहा गया है-'तं जहा' जैसे-'थालपाणए, तयापाणए, सिंबलिपाणए, सुद्धपाणए' स्थालपानक; त्वक्पानक, सिम्बलीपानक, और शुद्धपानक 'से कि तं थालपाणए' स्थालपानक का क्या स्वरूप है ? तो इसका उत्तर इस प्रकार से है-'थालपाणए जं गं दावालगं, दाजुभगं वा, दाकल वा सीयलगं, उल्लगं हत्थेहिं परामुसह, न य पणियं पियइ, से तं थालपाणए' जिस पानक में स्थाल उदक से गीला हो, उदक से गीला बारक हो, या उदक से आई कुभ हो, या उदक से હાથથી મસળેલું જે પાનક છે, તેને હસ્તમર્દિત પાનક કહે છે. તેનું બીજું नाम मातयनि ' छ. (3) सूर्य ना तापथी तप पान छेतेने આપતપ્ત પાનક કહે છે. (૪) જે પાનક શિલા પરથી નીચે પડયું હોય છે, तेन नाम शितप्रष्ट पान छ “से किं तं अपाणए" पान शु છે એટલે કે અપાનકનું સ્વરૂપ કેવું છે? તે તેને ઉત્તર એ છે કે " अपाणए चउठिवहे पण्णत्ते" अानना या प्राधा छे. "तंजहा" ते २ मा प्रभार छ-" थालगाणए, तयापाणए, सिवलिपाणए, सुद्धपाणए" (१) स्थापान, (२) पान४, (3) सिमलीपान, (४) शुद्ध पान " से किं तं थालपाणए ?' स्यासपान ११३५ छ ! त तन। उत्त२ ॥ प्रभार छ-" थापाणए जं णं दाथालगं, दावारगं वा, दाकुंभगं वा, दाफलसं वा सीयलगं, उल्लगं हत्थेहि परामुसइ, न य पाणियं पियइ, से न थालपाणए"
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧