________________
प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १५ उ० १ सू० ९ गोशालकवृत्तान्तनिरूपणम् ५७५ भरेंति, भरेत्ता, पबहणाई भरेंति, परहणाई भरेता चउत्थं पि अन्नमन्न एवं वयासी' ततः खलु ते वणिजो हृष्टतुष्टाः सन्तो मणिरत्नैः भाजनानि पात्राणि, भरन्ति-पूरयन्ति, भृत्वा प्रवहणानि-वाहनानि भरन्ति, भृत्वा, चतुर्थमपि वारम् अन्योन्यम् एवं वक्ष्यमाणपकारेण अवादिषु:-'एवं खलु देवाणुप्पिया अम्हे इमस्स वम्मीयस्स पढमाए वप्पाए भिन्नाए ओराले उदगरयणे आसाइए' भो देवानुप्रियाः ! एवं खलु-पूर्वोक्तरीत्या निश्चयेन अस्माभिः अस्य वल्मीकस्य प्रथमे वने शिवरे-भिन्ने-विदारिते सति उदारम् उदकरत्नम् आसादितम् पाप्तम् , 'दोच्चाए वपाए भिमाए ओराले सुअण्णरयणे आसाइए' द्वितीए वप्रे-शिखरे भिन्ने सति अस्माभिः उदारम् सुवर्णरत्नम् आसादितम्-प्राप्तम् , 'तच्चाए वप्पाए भिन्नाए ओराले मणिरयणे आसाइए' तृतीर वप्रे-शिखरे भिन्ने सति अस्माभिः उदारम् रस्नों को प्राप्त किया 'तए णं ते वणिया हट्टतुट्टा भायणाई भरेंति' इसके बाद वे वणिक बहुत अधिक हर्षित एवं संतुष्ट चित्त हुए और फिर उन्होंने अपने २ भाजनों को उनसे भर लिया। 'भरेत्ता पवहणाई भरेंति' भाजनों को भरकर फिर उन्होंने उन भाजनों को बैलों के ऊपर लाद दिया। 'पवहणाई भरेत्ता चपत्थंपि अन्नमन्नं एवं वयासी' बैलों पर लादकर उन लोगों ने फिर चौथी बार आपस में मिलकर इस प्रकार की सलाह की-'एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हे इमस्स वम्मीयस्स पढमाए वप्पाए भिन्नाए ओराले उद्गरयणे आसाइए' हे देवानुप्रियो ! हम लोकों ने इस वल्मीक के प्रथम शिखर को खोदने पर उदार उदक रत्न प्राप्त किया है, 'दोच्चाए वप्पाए भिन्नाए ओराले सुचण्णरयणे आसाइए' तथा वितीय शिखर खोदने पर उदार सुवर्णरत्न प्राप्त किया है। सवान योग्य) मेi S२ मणिरत्न भणी माव्यां. "तए णं ते वणिया हटतदा भायणाई भरे'ति" तनी प्रातिथी 8ष मन सतोष पासात पशि.
से पातपाताना साना (पात्र)मा त भनिरत्नाने भरी बीघi. “ भरेचा पवणाई भरे ति" त्या२ मा तमाशे ते भासनाने मजहोनी थी। ५२ बाही वाघi. “ पवहणाई भरेत्ता चउत्थंपि अन्नमन्नं एवं वयासी" त्या२ मा भो याथी पा२ ५२२५२नी साथे मा प्रभार पातयात ३री. “एवं खलु देवाणपिया ! अम्हे इमस्स वम्मीयस्स पढमाए वप्पाए भिन्नाए ओराले उदगरयणे आसाइए" वानुप्रियो ! ॥ १६भी न पडता शिमरने वाथ भा५शन हा२ २त्न प्राप्त यु. "दोच्चाए वप्पाए भिन्नाए ओराले सुवण्णरयणे आसाइए" तथा भादु शिप२ मोहपाथी हा२ सुपायरत्ननी प्राति थ६. “तचाए वपाए भिन्नाए ओराले मणिरयणे आमइए" अनेत्री शिम.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧