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________________ भगवतीसूत्रे दोत्-‘से गयमेयं भग! गयगय मेयं भगवं?' इति, 'तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं अंतियाभो एयमढे सोच्चा निसम्म भीर जाप संजायभए ममं वंदइ, नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं क्यासी'-ततः खलु स गोशालो मङ्खलिपुत्रो मम अन्तिकात्-समीपात् , एतमर्थ-पूर्वोक्तार्थ श्रुवा, निशम्भ-हृदि अबधार्य भीतो यावत् त्रस्त:-सञ्जातमयः सन् मां वन्दते, नमस्पति, वन्दित्वा, नमस्यित्वा, एवं-वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीव-'कह णं भंते ! संखित्तविउलतेयलेस्से भवइ ?' हे भदन्त ! कथं खलु संक्षिाविपुलतेनोलेश्य:-संक्षिप्ता-संकोचिता विपुला पचुरा तेजोलेश्या येन स तथाविधो जनो भवति ? 'तए णं अहं गोयमा ! गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वयासी' हे गौतम ! ततः खलु अहं गोशालं मङ्खलिपुत्रम् एवंकहने लगा-से गयमेयं भगवं, से गयगयमेयं भगवं!' हे भगवन् ! मैं जान गया, हे भगवन् ! मैं जान गया। 'तए ण से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं अंतियाओ एयम8 सोच्चा निम्म भीए जाव संजायभए ममं वंद६, नमंसह, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वासी' इसके बाद जब गोशाल ने मेरे द्वारा कहे गये इस कथनरूप अर्थ को सुना तो वह सुनकर और इसे हृदय में धारण कर डर गया, एवं संजातभय होकर उसने मुझे वन्दना की, नमस्कार किया, वन्दना नमस्कार करके फिर वह इस प्रकार बोला, 'कहं णं भंते ! संखित्तविउगतेयलेस्से भवई' हे भदन्त ! मनुष्य संक्षिप्त तेजोलेश्या वाला, विपुल-प्रचुर तेजोलेश्यावाला कैसे होता है ? 'तए णं अहं गोयमा ! गोसालं मंखलिपुत्त एवं वयासी' तय मम एवं वयासी" ते वेश्याने समेटी सपने तो भने मा प्रभार) ह्यु" से गयमेय भगवं! से गयगयमेय भगवं !" " 3 भगवन् ! दु पात જાણી ગયો છું, હે ભગવન્ ! હું તે બરાબર જાણી ગયો છું કે આપે જ શીતલેશ્યા છોડીને ગે શાલાને મારી ઉષ્ણ તેજોલેસ્યાથી બચાવી લીધું છે.” "तए णं से गोसाले मखलिपुत्ते मम' अंतियाओ एयमटुं सोच्चा निसम्म भीए जाव संजायभए ममं वदइ, नमसइ, वंदित्ता, नम सित्ता एवं वयासी' भा। દ્વારા કહેવામાં આવેલા આ કથન રૂપ અર્થને સાંભળીને તથા હદયમાં ધારણ કરીને, શાલકના મનમાં ભય ઉત્પન્ન થયે, આ પ્રકારે જેને ભય ઉત્પન્ન થયો છે એવા તે ગોશાલકે મને વંદણું કરી નમસ્કાર કર્યા. शानभ२४१२ री तो भने माप्रमाणे ह्यु-" कह णं भंते ! संखित्त विउलयलेस्से भाइ ?" 3 समपन् ! मनु०५ सक्षित तनवेश्यावा। अथवा विYस तसवेश्यावाणी वी शत थाय छे ? " तए णं अह गोयमा ! गोसालं मखलिपुसं एवं वयासी" गौतम ! त्यारे में भलिपुत्र શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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