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________________ ५०० भगवतीस्त्र पणियभूमीए मए सद्धिं अभिसमन्नागए' मम सर्वतो यावत् समन्तात् मार्गण. गवेषणं कुर्वन् , कोल्लाकसन्निवेशस्य बहिर्भागे पणितभूमौ, भाण्ड विक्रयस्थाने मया साई-सह, अभिसमन्त्रागतः-मिलितः, 'तएणं से गोसाले मंखलिपुत्ते हट्ठ तुढे ममं तिक्खु तो आयाहिणपयाहिणं जाव नमंसित्ता, एवं वयासी'-ततः खलु स गोशालो मङ्गलिपुत्रो हृष्ट तुष्टः सन् मम त्रिकृत्वः त्रिवारम् आदक्षिणमदक्षिणं यावत्-करोति, कृत्वा वन्दते, नमस्यति, वन्दित्वा, नमस्थित्वा, एवं-वक्ष्माणपकारेण आदीत्-'तुभं भंते ! मम धम्मायरिया, अहं गं तुभ अंतेवासी' हे भदन्त ! यूयं खलु मम धर्माचार्याः वर्तध्वे, अहं खल्लु युष्माकम् अन्तेवासी-शिष्योऽस्मि, 'तएणं अहं गोयमा ! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स एयम पडिसुमेणि' हे गौतम ! ततः खलु अहं गोशालस्य मङ्खलिपुत्रस्य एत'ममं सव्वओ जाव करेमाणे कोल्लागसंनिवेसस्स बहिया पणियभूमीए मए सद्धिं अभिसमन्नागए' अन्वेषण शोधन करता हुआ वह कोल्लाक संनिवेश के बाहर भाग में पणितभूमि में- भाण्डविक्रयस्थान में मुझ से आकर मिला 'तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते हहतुढे ममं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं जाव नमंसित्ता एवं वयासी' वहां आकर उस मंखलिपुत्र गोशालने हृष्ट तुष्ट होकर मेरी तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा की। आदक्षिण प्रदक्षिणा करके वन्दना की, नमस्कार किया, चन्दना नमस्कार करके फिर वह मुझ से इस प्रकार पोला-'तुम्भे णं भते ! मम धम्मायरिया, अहं गं तुम्भं अंतेवासी' हे भदन्त ! आप मेरे धर्माचार्य हैं और मैं आपका अंतेवासी हूं। 'तए णं अहं गोयमा ! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स एयमढे पडिसुणेमि' तब हे गौतम ! मैंने मंखलिपुत्र " मम' सव्वओ जाव करेमाणे कोल्लागसंनिवेसस्स बहिया पणियभुमीए मए सद्धि अभिसमन्नागए" मा प्रमाणे शाथ उरत २तसा सनिवेशना मानामा तभूमिमा- भांडविक्रय, स्थानमां-भावान ते मन भाया. “तएणं से गोसाले खलिपुत्त हतुठे मम तिक्खुत्तो आयाहिण पयाहिण जाव नमंसित्ता एवं वय सी" त्या भावाने भने सताषy તેણે ત્રણ વાર મારી પ્રદક્ષિણા કરી પ્રદક્ષિણા કરીને વંદણા કરી અને नमः॥२ ४ा. वहानम२४॥२ ४शने तो भने २मा प्रमाणे यु-" तुब्भे गं भंते ! मम धम्मायरिया, अह ण तुभं अंतेवासी" सन् ! आप भा२॥ धर्माया छ, भने हुँमायनो मतवासी (शिष्य) छु "तए ण अह गोयमा! गोसालस्स मखलिपुत्तस्स एयमदु पडिसुणेमि” 8 गौतम ! त्यारे भविपुत्र शनी त वातना में स्वी२ ज्यो. "तए ण अह गोयमा ! શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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