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भगवती सूत्रे
जानाति, पश्यति ? भगवानाह - हंता, जाणः पास' हे गौतम! हन्त - सत्यम्, केवलित सिद्धोऽपि अनन्त पदेशिकं स्कन्धम् अनन्तप्रदेशिक स्कन्धरूपेण जानाति, पश्यति । अन्ते गौतम आह-' सेवं भंते । सेवं भते । त्ति हे भदन्त ! तदेवं भवदुक्तं सत्यमेव, हे भदन्त ! तदेवं भवदुक्तं सत्यमेवेति ॥ सू० १ ॥ ॥ इति श्री विश्वविख्यात - जगद्वल्लभ- प्रसिद्धवाचक- पञ्चदशभाषाकलितललितकळापालापक प्रविशुद्धगद्यपद्यनेकग्रन्थनिर्मापक, वादिमानमर्दक- श्री शाहू छत्रपति कोल्हापुरराजप्रदत्त'जैनाचार्य' पद भूषित — कोल्हापुरराजगुरुबालब्रह्मचारि - जैनाचार्य - जैनधर्मदिवाकर - पूज्य श्री घासीलालवतिविरचितायां श्री " भगवतीसूत्रस्य" प्रमेयचन्द्रिका ख्यायां व्याख्यायां चतुर्दशशत के दसमोदेशकः समाप्तः ॥१४- १०॥ ॥ चतुर्दशशतकं समाप्तम् ॥
हैं उसी प्रकार से सिद्ध भी अनन्तप्रदेशीस्कन्ध को अनन्तप्रदेशीस्कंधरूप से जानते है । और देखते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'हंता, जाणइ पास' हां, गौतम ! केवली के जैसे सिद्ध भी अनन्तप्रदेशीस्कन्ध को अनन्तप्रदेशी स्कन्धरूप से जानते हैं और देखते हैं। अब अन्त में गौतम प्रभु से कहते हैं - 'सेवं भंते! सेवं भंते ! स्ति' हे भदन्त ! आपका कहा हुआ यह सब विषय सत्य ही है, हे भदन्त ! आपका कहा हुआ यह सब विषय सत्य ही है | सू० १॥
जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर पूज्यश्री घासीलालजी महाराज कृत "भगवतीसूत्र " की प्रमेयचन्द्रिका व्याख्याके चौदहवें शतक का दशव उद्देशक समाप्त ॥१४- १० ॥ || चौदहवां शतक संपूर्ण ॥
महावीर प्रभुना उत्तर- "हंता, जाणइ, पासइ ” डा, गौतम ! वणीनी જેમ સિદ્ધ પણ અન તપ્રદેશી કધને અનંતપ્રદેશી કધ રૂપે જાણે છે અને દેખે છે. उद्देशने अते गौतम स्वाभी महावीर अलुने उडे - " सेव भंते ! सेवं भंते ! ति " "हे भगवन् ! आपनु अथन સત્ય छे. हे भगवन् ! આપનું કથન સથા સત્ય છે. ” આ પ્રમાણે કહીને મહાવીર પ્રભુને વાંદણાનમસ્કાર કરીને તેઓ પાતાના સ્થાને બેસી ગયા. ઘસૢ૦૧૫ જૈનાચાય જૈનધમ દિવાકર પૂજ્યશ્રી ઘાસીલાલજી મહારાજ કૃત “ભગવતીસૂત્ર”ની પ્રમેયચન્દ્રિકા વ્યાખ્યાના ચૌદમા શતકના દસમા ઉદ્દેશે! સમાસ ૫૧૪–૧૦ના ।। ચૌદસુ' શતક સમાપ્ત ।।
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧