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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १४ उ० १० सू० १ केवलीप्रभृतिनिरूपणम् ४२९ कल्पं लान्तककररूपेण, महाशुक्रं कल्पं महाशुक्र कल्परूपेण, आनतमाणतं कल्पम् आनतमाणतकल्परूपेण, आरणाच्युतं कल्पम् आरणाच्युतकल्परूपेण जानाति, पश्यति । गौतमः पृच्छति-'केवली णं भंते ! गेवेज्जविमाणे गेवेज्जविमाणे त्ति जाणइ, पासइ ? ' हे भदन्त ! केवली खलु अवेयकविमानान् अवेयकविमान इत्येवं रूपेण किम् जानाति, पश्यति ? भगवानाह-एवं चेक, एवं अणुत्तरविमा. णेवि ' हे गौतम ! एवमेव-पूर्वोक्तरीत्यैव, केरली अवेयकविमानान् ग्रैवेयकविमानरूपेग जानाति, पश्यति, एवं-तथैव-पूर्वोक्तरीत्यैत्र, अनुत्तरविमानामपि अनुत्तरविमानरूपेण केवली जामाति, पश्यति, गौतमः पृच्छति-'केवलीणं भंते ! ईसिपब्भारं पुढदि ईसिपन्भारपुढवि त्ति जाणइ, पासइ ? ' हे भदन्त ! केवली रूप से, सहस्रारकल्प को सहस्रारकल्परूप से आनतप्राणत कल्प को आनतप्राणतकल्परूप से और आरण अच्युतकल्प को आरण अच्युत. रूप से जानते हैं और देखते है। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं'केवली णं भंते ! गेवेज्जविमाने गेवेज्जविमाणे त्ति जाणइ पासइ' हे भदन्त ! केवली अवेयकविमानों कों-ये प्रैवेयकविमान हैं इसरूप से क्या जानते हैं और देखते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- एवं चेव, एवं अणुत्तरविमाणे वि' हां गौतम! केवली अवेयकविमानों को अवेयकविमानरूप से जानते हैं, देखते हैं, इसी प्रकार से वे पांच अणुत्तरविमानों को भी अणुत्तरविमानरूप से जानते हैं, देखते हैं। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'केवली णं भंते ! ईसिपम्भारं पुढविं ईसिपम्भारपुढवि त्ति जाणइ पासई' हे भदन्त ! केवली ईषत्प्रारभाराબ્રહ્મલેક કલ્પરૂપે, લાન્તક કલ્પને લાન્તક કપરૂપે, મહાશુક્ર કલપને મહાશક કપરૂપે, સહસ્ત્રાર ક૯પને સહસ્ત્રાર કલ્પરૂપે, આનતાણુત કલ્પને આનતપ્રાણત કરૂપે, અને આરણ અયુત કાને આરણઅષ્ણુત કલ્પ રૂપે જાણે छे मन मे छे. हुवे गौतम स्वामी सेवा प्रश्न पूछे छे -"केवलीण भंते ! गेवेन्जविमाणे गेवेज्जविमाणेत्ति जागइ पासइ ?' 8 मान! Tel શૈવેયક વિમાનને થ્રિવેયક વિમાન રૂપે જાણે છે અને દેખે છે? महावीर प्रसन। उत्तर-" एवं चेव, एवं अणुत्तरविमाणे वि" है, ગૌતમ ! કેવળી ગ્રેવેયક વિમાનેને દૈવેયકવિમાન રૂપે જાણે છે અને દેખે છે. એ જ પ્રમાણે તેઓ પાંચ અનુત્તર વિમાનેને પણ અનુત્તર વિમાને રૂપે જાણે છે અને દેખે છે. गौतम स्वामीना प्रश्न-"केवलोणं भवे ! ईसिपब्भारं पुढवि ईसिपब्भार. पुढवी त्ति जागइ, पाचइ ?” उ अगवन् ! शुंनी पत्रमा पृथ्वीन (સિદ્ધ શિલાને) ઈવાસારા પુરી રૂપે (સિદ્ધ શિલા રૂપે) જાણે છે અને દેખે છે? શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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