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________________ भगवतीसूत्रे पूर्वोक्तवदेव, केवली शर्करामभां पृथिवीं शर्कराप्रभा पृथिवीरूपेण जानाति, पश्यति, एवं-रीत्या यावत्-केवली वालुकामा पृथिवीं वालुकाप्रभापृथिवीरूपेण, पङ्कप्रभां पृथिवीं पङ्कप्रभापृथिवीरूपेण, धूममभा पृथिवीं धूममभापृथिवीरूपेण, तमः प्रभां पृथिवीं तमःमभापृथिवीरूपेण, अधः सप्तमी पृथिवीम् अधः सप्तमी पृथिवी रूपेण जानाति, पश्यति । गौतमः पृच्छति- केवली णं भंते ! सोहम्मं कप्पं सोहम्मकप्पेति जाणइ, पासइ ? ' हे भदन्त ! केवली खलु सौधर्म कल्पं सौधर्मकल्परूपेण किं जानाति, पश्यति ? भगवानाह-' एवं चेव, एवं ईसाणं एवं जाव अच्चुय' हे गौतम ! एवमेव-पूर्वोक्तरीत्यैव, केवली सौधर्म कल्पं सौधर्मकल्परूपेण जानाति, पश्यति, एवं-तथैव-पूर्वोक्तरीत्यैव, ईशानं कल्पम् ईशानकल्परूपेण, एवं-पूर्वोक्तरीत्यैव यावत्-सनत्कुमारं कल्पं सनत्कुमारकल्परूपेण, माहेन्द्रं कल्पं माहेन्द्रकल्परूपेण, ब्रह्मलोकं कल्पं ब्रह्मलोककल्परूपेण, लान्तकं को शर्कराप्रभापृथिवीरूप से जानते हैं, देखते हैं ? इसी प्रकार केवली वालुकाप्रभातथिवी को वालुकापभारूप से, पंकप्रभापृथिवी को पंकप्रभारूप से, धूमप्रभापृथिवी को धूमप्रभारूप से तमःप्रभा पृथिवी को तमःप्रभारूप से और अधः सप्तमीपृथिवी को अधःसप्तमीरूप से जानते हैं। ___अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं -केवली णं भंते ! सोहम्मं कप्पं सोहम्मकप्पेति जाणइ पासह' हे भदन्त ! केवली सौधर्मकल्प को यह सौधर्मकल्प है इस रूप जानते हैं क्या ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'एवं चेव, एवं ईसाणं एवं जाव अच्चुयं' हां, गौतम ! केवली सौधर्मकल्प को सौधर्मकल्परूप से जानते हैं, देखते हैं। इसी प्रकार वे ईशान कल्प को ईशानकल्परूप से, सनत्कुमारकल्प को सनत्कुमार कल्परूप से, माहेन्द्रकल्प को माहेन्द्रकल्परूप से ब्रह्मलोककल्प को ब्रह्मलोककल्परूप से लान्तककल्प को लान्तककरूप से, महाशुक्रकल्प को महाशुक्रकल्पદેખે છે. એ જ પ્રમાણે તેઓ વાલુકા પ્રભાને વાલુકાપ્રભા રૂપે, પંકપ્રભાને પંકપ્રભા રૂપે, ધૂમપ્રભાને ધૂમપ્રભા રૂપે, તમઃપ્રભાને તમ:પ્રભા રૂપે અને અધઃસપ્તમી પૃથ્વી ને અધઃસપ્તમી પૃથ્વી રૂપે જાણે છે અને દેખે છે. गौतम मीना प्रश्न-“ केवली ण भंते । सोहम्मं कप्पं सोहम्मकप्पेति जाणइ पासइ ?" 3 भगवन् ! शुaal सौधर्म ४६पन सौधम ४६५ ३३ જાણે છે અને દેખે છે? महावीर प्रसुनी उत्तर-“ एवं चेव, एवं ईसाण', एवं जाव अच्चुयं " હા, ગૌતમ ! કેવલી સૌધર્મ કલપને સૌધર્મ ક૯પ રૂપે જાણે છે અને દેખે છે. એ જ પ્રમાણે તેઓ ઇશાન કલ્પને ઈશાન કલ્પરૂપે, સનકુમાર કલ્પને સનકુમાર કલ્પરૂપે, મહેન્દ્ર કપને મહેન્દ્ર કલ્પરૂપે, બ્રહ્મલેક કલ્પને શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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