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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१४ उ० १० सू० १ केवलीप्रभृतिनिरूपणम् ४२३ एवं-तथैव, सिद्धं यावत्-केवली जानाति, पश्यति । गौतमः पृच्छति-'जहाणं मंते ! केवली सिद्धं जाणइ, पासइ, तहा णं सिद्धे वि सिद्धं जाणइ, पासइ ?' हे भदन्त ! यथा खलु केवली सिद्धं जानाति, पश्यति, तथा खलु किं सिद्धोऽपि सिद्धं जानाति, पश्यति ? भगवानाह-'हंता, जाणइ, पासइ' हे गौतम ! हन्तसत्यम् , केवलिवत् सिद्धोऽपि सिद्धं जानाति पश्यति । गौतमः पृच्छति-केवली णं भंते ! भासेज्जा, वागरेज वा ?' हे भदन्त ! केवली खलु कि भाषेत वा, अपृष्टएव वदेत् वा ? किं व्याकुर्याद्वा पृष्टः सन् व्याक्रियां वा कुर्यात् ? भगवानाह-हता, भासेज्ज वा, वागरेज्ज वा' हे गौतम ! हन्त-सत्यम् , केवली हैं और देखते हैं । 'एवं केवलिं एवं सिद्धं जाव' इसी प्रकार से वे केवली को और सिद्ध को भी जानते हैं और देखते हैं। ___ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं -'जहाणं भंते ! केवली सिद्धं जाणइ, पासइ तहा णं सिद्धे वि सिद्धं जाणइ पासई' हे भदन्त ! जैसे केवली सिद्ध को जानते हैं और देखते हैं-वैसे ही क्या सिद्ध भी सिद्धों को जानते हैं और देखते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'हंता, जाणहपास' हाँ, गौतम! केवली के जैसा सिद्ध भी सिद्धों को जानते हैं और देखते हैं। ____ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'केवली णं भंते ! भासेज्ज वा, वागरेज्ज वा' हे भदन्त ! केवली क्या विना पूछे ही बोलते हैं ? अथवापूछने पर उत्तर देते हैं क्या? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'हंता, भने हेमे छे. “ एवं केवलिं, एवं सिद्धं जाव " मे प्रमाणे तो वहान અને સિદ્ધને પણ જાણે છે અને દેખે છે. હવે ગૌતમસ્વામી મહાવીર प्रशन वा प्रश्र पूछे छे ,-"जहा णं भंते ! केवली सिद्धं जाणइ, पासइ, सहाण सिद्धे वि सिद्ध जाणइ, पासइ " 3 साप ! भ पक्षी सिद्धन જાણે છે અને દેખે છે, એજ પ્રમાણે શું સિદ્ધ પણ સિદ્ધને જાણે છે અને मेले मरा?
महावीर प्रभुना उत्तर-“ हता, जाणइ, पासइ" , गौतम ! Bein જેમ સિદ્ધ પણ સિદ્ધને જાણે છે અને દેખે છે.
गौतम स्वामीना प्रश्न-" केवली णं भंते ! भासेज्ज वा, वागरेज्ज वा?" હે ભગવન! શું કેવલી વિના પૂછયે જ બેલે છે? કે પૂછવામાં આવે ત્યારે ४ 6त्तर छ?
महावीर प्रभुना त्तर-"हंता, भासेज्ज वा, वागरेज्ज वा" ही. ગૌતમ ! કેવલી વિના પૂછયે પણ બેલે છે અને પૂછવામાં આવે, ત્યારે ઉત્તર પણ દે છે.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧