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भगवतीसूत्रे देवा, अणुत्तरोक्वाइया देवा ? ' हे भदन्त ! तत्-अथ, केनार्थेन-कथं तावद एवमुच्यते-अनुत्तरौपपातिका देवाः अनुत्तरौपपातिका देवा इति ? भगवानाह'गोयमा ! अणु तरौववाइयाणं देवाणं अणुत्तरा सदा जाव अणुत्तरा फासा' हे गौतम ! अनुत्तरौपपातिकानां देवानाम् अनुत्तराः- न उत्तरो येभ्यस्ते अनुत्तराःसर्वोत्तमाः शब्दा यावत्-अनुत्तरा गन्धाः, अनुत्तराणि रूपाणि, अनुत्तराः रसाः, अनुत्तराः स्पर्शा भवन्ति, ' से तेणटेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ ‘जाव' अनुत्तरोव. चाइया देवा अनुत्तरोववाइया देवा' हे गौतम ! तत् अथ, तेनार्थेन एवमुच्यते(यावत् ) अनुत्तरोपपातिका देवाः अनुतरौपपातिकादेवा इति, गौतमः पृच्छति'अणुत्तरोवाइया णं भंते ! देवा केवइएणं कम्मावसे सेणं अणुत्तरोवाइयदेव
अब गौतम प्रभु से ऐसा ही पूछते हैं-'से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ, अणुत्तरोववाइया देवा' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि अनुत्तरोपपातिकदेव इस पद के वाच्य अनुत्तरोपपातिक देव होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! अणुत्तरोववाइयाणं देवाणं अणुत्तरा सद्दा, जाव अणुत्तरा फासा' हे गौतम ! अनुत्तरौपपातिक देवों के जिनसे उत्तर और कोई नहीं है ऐसे सर्वोत्तम शब्द होते हैं, यावत् अनुत्तर गंध होते हैं । अनुत्तररूप होते हैं। अनु. त्तर रस होते हैं, अनुत्तर स्पर्श होते हैं 'से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ, जाव अनुत्तरोववाइया देवा' इसी कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है कि अनुत्तरौपपातिक देव यह पद अनुत्तरौपपातिक देव इस अर्थका वाचक है।
अब गौतम स्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'अणुत्तरोववाइयाणं भंते!
गौतम स्वामीना प्रश्न-" से केणडेणे भंते ! एवं वुच्चइ अणुत्तरोववाइया देवा०१” 8 ममपन्! मा५ ॥ १२ मे ४ छ। 'अनुत्तरी५५. તિક દેવ” પદ વાચ્ય અનુત્તરૌપપાતિક દે હોય છે?
महावीर प्रभुन। उत्तर-" गोयमा ! अणुत्तरोववाइयाण देवाणं अणुत्तरा सहा, जाव अणुत्तरा फासा" है गौतम! अनुत्तरी५५ति वान। . અનુત્તર (જેના કરતાં ઉત્તમ કેઈ ન હોય એ, સર્વોત્તમ) હોય છે, તેમના શબ્દ પણ અનુત્તર હોય છે, તેમનું રૂપ પણ અનુત્તર હોય છે, રસ પણ अनुत्तर डाय छ भने २५ ५५ अनुत्तर डाय छे. “से तेणटेणं गोयमा ! एवं वजह, जाव अनुत्तरोववाइया देवा"गौतम! ३ से ४ तमन અનુત્તરૌપપાતિક દેવે કહે છે.
गौतम स्वामीना प्रश्न-“ अणुत्तरोववाइयाणं भंते ! देवा केवइएणं कम्मा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧