SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 335
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १४ उ० ७ सू० ३ तुल्यताप्रकारनिरूपणम् ३२१ स्कन्धः त्रिप्रदेशिकादि दशमदेशिकस्य स्कन्धस्य द्रव्यत स्तुल्यो भवति, तुल्ल. संखेज्जपएसिए खंधे तुल्लसंखेज्जपएसियस्स खंधस्स दबओ तुल्ले' तुल्य संख्येयपदेशिकः स्कन्धस्तुल्यसंख्येयप्रदेशिकस्य स्कन्धस्य द्रव्यत स्तुल्यो भवतीत्यर्थः । 'तुल्लसंखेज्जपएसिए खंधे तुल्लसंखेज्जपएसियवइरित्तस्सखंधस्स दव्यओ णो तुल्ले' तुल्यसंख्येयपदेशिकः स्कन्धस्तुल्यसंख्येयप्रदेशिक व्यतिरिक्तस्य स्कन्धस्य द्रव्यतः-एकाणुकाद्यपेक्षया, नो तुल्यो भवति, ' एवं तुल्ल असंखेज्जपएसिए वि० एवं तुल्लअणंतपएसिए वि' एवं तथैव-पूर्वोक्त. रीत्यैव, तुल्यासंख्येयप्रदेशिकोऽपि स्कन्धस्तुल्यासंख्येयप्रदेशिकस्य स्कन्धस्य द्रव्यतः-एकाणुकाधपेक्षया तुल्यो भवति, किन्तु तुल्यासंख्येयप्रदेशिकः स्कन्धस्तुल्यासंख्येयप्रदेशिकव्यतिरिक्तस्य स्कन्धस्य द्रव्यतः-एकाणुकाधपेक्षया नो अपेक्षा से अपने २ त्रिप्रदेशिकादि दश प्रदेशिकान्त दूसरे स्कन्ध के समान होते हैं 'तुल्लसंखेज्जपएसियखंधे तुल्लसं-खेजपएसियस्स खंधस्स दवभो तुल्ले' इसी प्रकार से तुल्य संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध दूसरे तुल्य संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध के साथ द्रव्य की अपेक्षा समान होता है 'तुल्ल संखेजपएसिए खंधे तुल्ल संखेजपएसियवपरित्तस्स खंधस्स दवओ णो तुल्ले' परन्तु वही तुल्य संख्यातप्रदेशिकस्कन्ध तुल्यसंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध से व्यतिरिक्त स्कन्ध के साथ द्रव्य एकाणुकादि की अपेक्षा तुल्य नहीं होता है । 'एवं तुल्ल असंखेज्जपएसिए वि, एवं तुल्ल अणंतपएसिए वि' इसी पूर्वोक्त रीति के अनुसार तुल्ल असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध भी तुल्य असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध के साथ द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य होता है, किन्तु वही तुल्य असंख्यातप्रदे. સાત પ્રદેશિક, આઠ પ્રદેશિક, નવ પ્રદેશિક અને દસ પ્રદેશિક સ્કંધ પણ દ્રવ્યની અપેક્ષાએ પોતપોતાના જેવાં જ ત્રિપ્રદેશિક આદિથી લઈને દસપ્રદેશિક पय-तानी साथे तुध्याय छे. “ तुल्ल संखेज्जपएसिए खंधे तुल्ल संखेज पएसियस खंधस्स दव्वओ तुल्ले" से प्रमाण तुझ्य सच्यात प्रशि સ્કંધ પણ બીજા તુલ્ય સંખ્યાત પ્રદેશિક સ્કંધની સાથે દ્રવ્યની અપેક્ષાએ समान 31य छे. “ तुल्ल संखेजपएसिए खंधे तुल्ल संखेज्जपएसियवइरित्तस्स खंधस्स दवओ णो तुल्ले " ५२न्तु मे तुल्य समयातहशि: २७, તુલ્ય સંખ્યાત પ્રદેશિક સ્કંધ સિવાયના સ્કલ્પની સાથે દ્રવ્યની અપેક્ષાએ ( माशु महिनी मक्षा) तुक्ष्य हात नथी. “ एवं तुल्ल असंखेजपएसिए वि, एवं तुल्ल अणंतपएसिए वि" से प्रमाणे तुल्य असभ्यात પ્રદેશિક સ્કંધ પણ બીજા તુલ્ય અસંખ્યાત પ્રદેશિક સકંધની સાથે દ્રવ્યની અપેક્ષાએ સમાન હોય છે, પરંતુ એજ તુલ્ય અસંખ્યાત પ્રદેશિક કંધ, भ० ४१ શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy