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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १४ उ० ५ सू० १ नै० विशेषपरिणामनिरूपणम् २६५ मध्येन व्यतिव्रजेत् ? अग्निकायमुल्लड़्ध्य गच्छेत् किम् ? इतिपृच्छा, भगवानाह'गोयमा ! अत्थेगइए वीइवएज्जा, हे गौतम ! अस्त्येक:-कश्चित् पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकः अग्निकायस्य मध्यमध्येन व्यतिव्रजेत्, अथ च अस्त्येकः कश्चित् पश्चन्द्रियतिर्यग्योनिकः अग्निकायस्य मध्यमध्येन नो व्यतिव्रजेत्, गौतमः पृच्छति-से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ० ?' हे भदन्त ! तत्-अथ, केनार्थेनकथं तावत् एवमुच्यते-अस्त्येकः कश्चित् पश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकः अग्निकायस्य मध्यमध्येन नो व्यतिव्रजेदिति ? भगवानाह-गोयमा ! पचेदियतिरिक्खजोणिया दुविहा-पण्णत्ता' हे गौतम ! पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योतिकाः द्विविधाः प्रज्ञप्ता:, 'तं जहा-विग्गहगइसमावन्नगा य, अविग्गदगइसमावन्नगा य' तद्यथा-विग्रहगतिके बीच में से होकर निकल जाते हैं क्या? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं गोयमा अत्थेगइए वीइवएज्जा, अत्थेगइए नोवीइवएज्जा' हे गौतम! कोई पंचेन्द्रियतिर्यश्च अग्मिकाय के बीच में से होकर निकल जाता है
और कोई पंचेन्द्रियतिर्यश्च उसके बीच में से होकर नहीं निकलता है। अव गौतम इस पर प्रभु से पूछते हैं-'से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ.' हे भदन्त ! ऐसा आप किस आधार से कहते हैं कि कोई पंचेन्द्रियतिर्यंच अग्निकाय के बीच में से होकर निकल जाता है, और कोई पंचेन्द्रियतिर्यश्च उस के बीच में होकर नहीं निकलता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! पंचिंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता' पंचेन्द्रियतिर्यच दो प्रकार के कहे गये हैं-'तं जहा-विग्गहगइसमावन्नगा य, अधिग्गहगइसमावन्नगा य' जैसे-एक पंचेन्द्रियतियं च विग्रहगति पुच्छा" के सन् ! शु पयेन्द्रिय तिय" मनियनी १२ये यन નીકળી શકે છે?
महावीर प्रभुन। उत्त२-" गोयमा ! अत्थेगइए वीइवएज्जा, अस्थेगइए नो वीइवएज्जा" 3 गौतम ! 'येन्द्रिय तिय य ममियायनी १२ये २४२ નીકળી જાય છે, અને કોઈ નીકળી જતું નથી.
गौतम स्वाभान प्रश्न-“से केणट्रेण भंते ! एवं वुच्चइ" भगवन् । मा५ શા કારણે એવું કહે છે કે કોઈ પચેન્દ્રિયતિય ચ અગ્નિકાયની વચ્ચે થઈને નીકળી જાય છે અને કઈ પંચેન્દ્રિયતિર્યંચ તેની વચ્ચે થઈને નીકળતું નથી?
भावी२ प्रभुन। उत्तर- गोयमा ! पंचिं दयतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता" गौतम ! येन्द्रिय लिय"याना में प्रा२ ह्या छ. "तंजहा" ते । नीय प्रभा छ-" विग्गहगइ मावन्नमा य, अविग्गहगइसमाव
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧