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________________ १२ भगवतीसूत्र वत्तव्यया भाणियन्या सभा विहूणा जाव चत्तारि पासायपंतीओ' एवं-पूर्वोक्तरीत्या, चमरचश्चाया राजधान्या वक्तव्यता भणितव्या, समाविहीना-सुधर्मादि पञ्चसमावर्णनवर्जिता सा वक्तव्यता विज्ञेयेत्यर्थः । ताश्च पञ्चसभा:-सुधर्मासमा १, उत्पातसभा २, अभिषेकसभा ३, अलंकारसभा ४, व्यवसायसमा बोध्या । तद् वक्तव्यताया अवधिमाह-यावत् चतस्त्र प्रासादपायः सन्ति इत्येतत्पर्यन्तमिस्पर्थः ताश्च चतस्त्रः प्रासादपतयः पाक्पदर्शिता एव सन्ति । गौतमः पृच्छति'चमरेणं भंते ! असुरिंदे असुरकुमारराया चमरचंचे आवासे वसहि उवे ?' हे भदन्त ! चमरः खल्लु अमुरेन्द्रः, असुरकुमारराजः चमरचञ्चे आवासपर्वते कि वसचिमुपैति ? तसर्वते वासं करोति किम् ? इति प्रश्नः । भगवानाह-' णो इण: यव्वा' इस प्रकार से चमरचंचा राजधानी की वक्तव्यता कही गई है सो उसे यहां पर कहनी चाहिये । 'सभाविहूणा जाव चत्तारि पासायपंतीभो' यहां सुधर्मा सभा आदि पांच सभाएँ नहीं हैं अत: उनका वर्णन यहां नहीं करना चाहिये । वे पांचसभाएँ इस प्रकार से हैं-सुधमांसभा, १ उत्पादसभा२, अभिषेकसभा ३, अलङ्कारसभा ४ और व्यवसायसभा ५। द्वितीय शतक के अष्टम उद्देशक की वक्तव्यता यहां पर कहाँ तक ग्रहण करनी चाहिये । सो इस बात को प्रकट करने के लिये सूत्रकार कहते हैं कि 'यावत् चतस्रः प्रासादपंक्तयः' इस पाठ तक वह वक्तव्यता यहां ग्रहण करनी चाहिये। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं 'चमरेणं भंते ! असुरिंदे असुरकुमारराया चमरचंचे आवासे वसहि उवेह' हे भदन्त ! असुरेन्द्र असुरकुमार राजचमर क्या चमरचंचा नामके आवासपर्वत को अपना निवासस्थान बनाये हुए है ? अर्थात् चमर क्या आवास पर्वत पर निवास करता है ? इसके उत्तर मही 1 2 " सभा विहूणा जाव चत्तारि पासायपंतीओ" मही સુધર્મા સભા આદિ પાંચ સભાઓ નથી, તેથી અહીં તેમનું વર્ણન કરવું नये नही पाय समायानां नाम मा प्रभारी छ-(१) सुधर्मासमा, (२) उत्पाहसला, (3) भनिसमा, (४) अरसमा भने (५) व्यवसायसमा બીજા શતકની વકતવ્યતાને ક્યાં સુધી અહીં ગ્રહણ કરવાની છે, તે વાતને ४८ ४२॥ माटे सूत्रा२ ४ छ ?-" यावत् चतस्रः प्रासादपंक्तयः" । સૂત્રપાઠ સુધીની વકતવ્યતા અહીં ગ્રહણ કરવી જોઈએ. गौतम स्वामीन। प्रश्न-" चमरेणं भंते ! असुरिदै असुरकुमारराया चमरचंचे आवासे वसहिं उवेइ ?" उसमपन् । शु मसुरेन्द्र, ससु२४मा२२॥ ચમર ચમરચંશા નામના આવાસપર્વત પર નિવાસ કરે છે ? શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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