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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १४ उ० ३ ०३ देषनामविनयविशेषनिरूपणम् २१७ शस्त्रेण प्रमादिनं समर्द्धिकं देवम् आक्रम्य महत्य मध्यभागेन व्यतिव्रजितुं प्रभुः - समर्थो भवेत् ? किं वा शस्त्रेण अनाक्रम्य - अपहृत्यैव मध्यभागेन व्यतिव्रजितुं प्रभुः समर्थः स्यात् ? भगवानाह - ' गोयमा ! अकमिता पभु. नो अणक्कमित्ता भू' हे गौतम! आक्रम्य शस्त्रेण प्रहृत्यैव, मध्यभागेन व्यतिव्रजितुं प्रभुः समर्थो भवेत्, नो अनाक्रम्य - शस्त्रेण अपहृत्य नो मध्यभागेन व्यतिव्रजितुं प्रभुः - समर्थो भवेत् । गौतमः पृच्छति - ' से णं भंते! किं पुत्रि सत्थे अक्कमिता पच्छा बीईएमा पुदि बीईएज्जा पच्छा सत्येणं अकमेज्जा ? ' हे भदन्त ! स खलु महर्द्धिका मध्यभागेन गन्ता देवः किं पूर्व-प्रथमं शस्त्रेण आक्रम्य - प्रहृत्य पश्चात् सत्थे णं अक्कमित्ता पभू अणकमित्ता पभू' हे भदन्त जो यह समर्द्धिक देव उस प्रमादी समर्द्धिक देव के बीच से होकर जब निकलता है-तो क्या वह पहिले उस पर शस्त्र से प्रहार करता है तब निकलता है ? या विना प्रहार किये निकलता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा ! अमिता पभू, नो अणकमित्ता पभू' हे गौतम! वह समर्द्धिक देव जो उस प्रमादी समर्द्धिक देव के बीच से निकलता हैं तब वह निकलने के पहिले उस पर अपने शस्त्र से प्रहार करता है तब बाद में निकलता है। इसके बिना नहीं अर्थात् विना प्रहार किये बिना नहीं निकलता है । अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा ही पूछते हैं- 'से णं भंते । किं पुठिंच सस्थेणं अक्कमित्ता पच्छा बोइवएज्जा, पुबि बीइबएज्जा, पच्छा सस्थे णं भक्कमेजा हे भदन्त ! वह मध्यभाग से होकर जानेवाला समर्द्धिक देव क्या पहिले उस पर शस्त्र से प्रहार करता है तब बाद निकलता है, या पहिले निकल L ? गौतम स्वाभीना प्रश्न " से णं भंते ! किं सत्थेणं अमित्ता पभू अणकामित्ता पभू' ” હે ભગવન્ ! તે સમાનઋદ્ધિવાબા દેવ એ તે સમાનઋદ્ધિવાળા પ્રમાદ્રી દેવની વચ્ચે થઈને જાય, તે શું તે પહેલાં તેના ઉપર શસ્રના પ્રહાર કરીને જાય છે, કે શસ્ત્રના પ્રહાર કર્યા વિના જાય છે ? महावीर अलुना उत्तर- " अक्कमिता पभू, नो अणक्कमिता पभू " डे ગૌતમ! તે સમદ્ધિક દેવ જો તે પ્રમાદી સમદ્ધિક દેવની વચ્ચે થઇ ને નીકળે છે, તે નીકળતા પહેલાં તેના ઉપર પેતાના શસ્ત્રનેા પ્રહાર કરીને જ નીકળે છે, પ્રહાર કર્યા વિના નીકળી શકતા નથી. गौतम स्वामीनो प्रश्न- " से णं भंते! किं पुव्विं सत्येणं अक्कमित्ता पच्छा बीइवज्जा, पुवं वीइवएज्जा, पच्छा सत्थेनं अवकमेन्जा ? ' डे लगવન્! વચ્ચે થઈને જનારા તે સમદ્ધિક દેવ શુ' પહેલાં તે પ્રમાદી સમદ્ધિ ક भ० २८ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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