SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१४ उ०१ सू०१ ना० अनन्तरोपपन्नकत्वादिनि० १६७ भगवानाह-गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति, तिरिक्खजोणियाउयंपि पकरेंति, मणुस्साउयपि पकरेंति, नो देवाउयं पकरेंति' हे गौतम ! परम्परोपपन्नका नैरयिकाः नो नैरयिकायुष्यं प्रकुर्वन्ति, अपितु तिर्यग्योनिकायुष्यमपि प्रकुर्वन्ति-बध्नन्ति, मनुष्यायुष्यमपि प्रकुन्ति-बध्नन्ति नो देवायुष्यं प्रकुर्वन्ति । गौतमः पृच्छति'अणंतरपरंपर अणुववन्नगाणं भंते ! नेरइया कि नेरइयाउयं परेंति० पुच्छा ? हे भदन्त ! अनन्तरपरम्परानुपपन्नकाः खलु नैरयिकाः किं नैरयिकायुष्यं प्रकुर्वन्ति ? किं तिर्यग्योनिकायुष्यं प्रकुर्वन्ति, किं मनुष्यायुष्यं प्रकुर्वन्ति, किं वा देवायुष्यं प्रकुर्वन्ति ? इति पृच्छा, भगवानाह-'गोयमा ! नो नेरपियाउयं पकरेंति, जाव नो देवाउयं पकरेंति' हे गौतम ! अनन्तरपरम्परानुपपन्नकाः खलु नैरयिका नो नैरयिकायुष्यं प्रकुर्वन्ति, यावत् नो तिर्यग्योनिकायुष्यं प्रकुर्वन्ति, नो मनुष्यायुष्यं मनुष्य का बंध करते है ? अथवा या देवायु का बंध करते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! नो नेरइयाउयं पक. रेति, तिरिक्खजोणियाऽयं पि पकरेंति, मणुस्तारयं पि पकरेंति, नो देवाउयं पकरें ति, परम्परोपपन्नक नैरयिकायु का बंध नहीं करते हैं, और न देवायु का बंध करते हैं, किन्तु तिर्यंचायु का और मनुष्यायु को बंध करते हैं। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-अर्णतरपरंपरअणुववन्नगा णं भंते ! नेरइया कि नेरइयाउयं पकरेंति पुच्छा' हे भदन्त ! जो नरयिक अनन्तर और परंपर उपपन्नक नहीं होते हैं वे क्या नैरयिक आयु का बंध करते हैं, या तिर्यंचायु का बंध करते हैं ? या देवायु का बंध करते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा! नो नेरइयाउयं पकरेंति, जाव नो देवाउयं पकरेंति' हे गौतम! अनन्तर परम्पर अनुपपन्नक जो नैरयिक होते हैं-वे नैरयिक आयु का बंध महावीर प्रभुना उत्तर-“गोयमा!" है गौतम ! नो रइयाउय' पकरेति, तिरिक्खजोणियाउय पि पकरेंति, मणुस्साउय पि पकरें ति, नो देवा. ज्यं पकरें ति" ५२-५२।५ ना२। ना२४ायुनी मध ५५ ४२ता नथी, वायुन। બંધ પણ કરતા નથી, પરંતુ તિર્યંચાયુને અને મનુષ્પાયુને બંધ કરે છે. गौतम स्वामीना प्रश-"अणंतरपरंपर अणुववन्नगाण भंते ! रइया किं नेरइयाउय पकरे ति पुच्छा” 8 सावन । ना२३ मनन्तर अने પરમ્પર ઉત્પન્નક હોતા નથી, તેઓ શું નરયિકાયુને બંધ કરે છે? કે તિર્યંચાયુને બંધ કરે છે? કે મનુષ્પાયુને બંધ કરે છે? કે દેવાયુને બંધ કરે છે? महावीर प्रभुना हत्त२-" गोयमा ! नो नेरइयाउय पकरे ति, जाव को देवाउय पकरें ति" गौतम ! मनन्त२ ५२२५२ मनुत्पन्न २ ना। डाय શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy