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________________ प्रमेन्द्रका टीका श० १४ उ० १ सू० २ नरकगतिनिरूपणम् १५५ 6 " " $6 भवेत् किमिति गौतमस्य प्रश्नः । भगवान: ह-' णो इणट्ठे समट्ठे ' नायमर्थः समर्थः नेरयाणं एगसमएण वा, दुसमण वा, तिसमएण वा, विग्गणं उववज्जेति नैरयिकाः खलु एकसमयेन वा ऋजुगत्या नरके उपपद्यन्ते, द्विसमयेन वा त्रिसमयेन वा विगत्या नारका नरके उपस्थन्ते पुरुषवाहुपसारणादिकं चासंख्यात समयकं भवतीति न तेन सादृश्यमिति भावः । अतः ' नेरइयाणं गोयमा ! वहा सीडा गई, वहा सीहे गविसर पण्णत्ते' हे गौतम ! नैरयिकाणां तथा पूर्वोक्ता एकद्वित्रिसमया शीघ्रागति रुत्पत्तिर्भवति, तथा - पूर्वोक्तः- एकद्वित्रिसमयरूपः शीघ्रो गतिविषयः कालः प्रज्ञप्तः, एवं जाव वैमाणियाणं, नवरं एगिंदियाणं का स्वभाव क्या नारकों का अपनी गति में और गति के विषय में होता है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'णो इण्डे समट्ट' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है क्योकि 'नेरइयाणं एगसमएण वा दुसमण वा तिसमएण वा विग्गहेणं उववज्जंति' नैरयिक जीव एक समयवाली ऋजुगति से और दो समयवाली अथवा तीन समयवाली विग्रहगति से नरक में उत्पन्न होते हैं। पुरुष का अपने बाहु आदि का प्रसारण आदिक असंख्पातसमयवाला होता है। इसलिये उसके साथ इसका सादृश्य घटित नहीं होता है । अतः 'नेरइयाणं गोयमा ! तहा 'सीहा गई तहा सोहे गविस पण्णत्ते' नैरयिकों की एक समयवाली ऋजुगतिरूप और दो समयवाली तथा तीनसमयवाली विग्रहगतिरूप उत्पत्ति होती है। तथा इस शीघ्र गति का विषय एक, दो और तीनसमयरूपकाल પ્રકારને શું નારકાના આદિ ક્રિયાઓમાં જેવા તે શીઘ્ર હાય છે, એજ પેાતાની ગતિના વિષયમાં સ્વભાવ હોય છે ખરા ? भहावीर अलुनो उत्तर - " णो इणट्ठे समट्ठे " हे गौतम! या अर्थ સમથ નથી. એટલે કે એવી કોઈ વાત नथी. र है - " नेरइयाणं एग समरण वा, दुसमण वा, तिसमएण वा, विग्रहेण उववज्र्ज्जति ” નારક જીવ એક સમયવાળી ઋજુગતિથી અને એ સમયવાળી અથવા ત્રણ સમયવાળી વિગ્રહ ગતિથી નરકમાં ઉત્પન્ન થાય છે. પુરુષના ખાડુ આદિના પ્રસરણને કાળ અસખ્યાત સમયના કહ્યો છે, તેથી નારકાની ગતિ સાથે પુરુષની તે गतिभां समानता सलवी शती नथी तेथी "नेरइयाणं गोयमा ! तहा बीहागई, तहा सी गईविए पण्णत्ते " नारानी मे समयवाणी ऋभुगति इय અને એ સમયવાળી તથા ત્રણુ સમયવાળી વિગ્રહગતિ રૂપ ઉત્પત્તિ થાય છે. તથા આ શીઘ્ર ગતિના વિષય (કાળ) એક, બે અને ત્રણ સમયરૂપ કાળ होय छे, " एवं जाव वैमाणियाणं, नवरं एर्गिदियाणं च समए विग्गहे, सेसं શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧ .
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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