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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १३ उ० ७ सू० ४ मरणस्वरूपानरूपणम् १०७ याम् अन्यत्र वा वनादौ पादपोपगमनं विधीयते यतो वा मृतकलेवरस्य बहिनि स्सारणं न कर्तव्यं भवति तद् अनिहारिमं पादपोपगमनमुच्यते, कलेवरस्यानिहरणीयत्वात् , यावत् उपर्युक्तं द्विविधमपि पादपोपगमनरूपं मरणं चतुर्विधाहारप्रत्याख्याननिष्पन्नं चेदं नियमात् नियमतः, अमतिकर्म-शरीरसंस्कारशुश्रूषादि वर्जितमेव भवति । गौतमः पृच्छति- भत्तपञ्चक्खाणेणं भंते ! कइविहे पण्णते ? हे भदन्त ! भक्तपत्याख्यानं खलु मरणं कतिविधं प्रज्ञतम् ? भगवानाह-'एवं तं चेव , नवरं नियमं सपडिकम्मे' हे गौतम ! एवं-पूर्वोक्तरीत्यैव, तदेव भक्तप्रत्याख्यानरूपं मरणमपि निर्झरिमानि रिमभेदेन द्विविधं प्रज्ञप्तम् , किन्तु है। तथा पर्वत की गुफा में या इसी प्रकार के और दूसरे स्थान मेंजो पादपोपगमन किया जाता है कि जहां से मृतकलेकर को बाहर नहीं निकालना पडे वह अनि रिमपादपोपगमन है। यावत्-उपयुक्त-दोनों प्रकार का भी पादपोपगमनरूपमरण चतुर्विधआहार के प्रत्याख्यान से निष्पन्न होता है। और इसमें साधक अपने शरीर के संस्कार शुश्रूषा आदि से रहित होता है । न तो वह अपने शरीर की सेवा शुश्रूषा स्वयं करता है और न दूसरों से ही कराता है। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'भत्तपच्चाक्खाणे णं भंते ! कइविहे पण्गत्ते' हे भदन्त ! भक्त प्रत्याख्यान कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'एवं तं चेव, नवरं नियमं सपडिकम्मे' हे गौतम ! भक्तप्रत्याख्यानमरण भी निहारिम और अनिहारिम के भेद से दो प्रकार का कहा गया है, परन्तु इसमें यह विशेषता है कि यह दोनों प्रकार भी भक्तप्रत्याએકાન્ત સ્થાનમાં જે પાદપિગમન કરવામાં આવે છે તેને અનિહરિમ પાદપપગમન કહે છે. ત્યાંથી મૃતશરીરને બહાર કાઢવું પડતું નથી ઉપર્યુક્ત બન્ને પ્રકારના પાદપોપગમન રૂપ મરણ ચાર પ્રકારના આહારના પરિત્યાગપૂર્વક જ થાય છે. તેની સાધના કરતા સાધક પિતાના શરીરનાં સંરકાર, સેવા, સુશ્રુષા આદિથી રહિત હોય છે. તે પોતે પિતાના શરીરની સેવાશશ્રષા કરતો નથી અને બીજાની પાસે સેવાશુશ્રષા કરાવતે પણ નથી, गौतम स्वामीना प्रश्न-" भत्तपच्चक्खाणे ण भंते ! कइविहे पण्णत्ते " હે ભગવન! ભક્તપ્રત્યાખ્યાનના કેટલા પ્રકાર કહ્યા છે? महावीर प्रभुने। उत्तर-"एवं तंचेव, नवर नियम सपडिकम्मे". ગૌતમ! ભક્ત પ્રત્યાખ્યાન મરણના પણ નિહરિમ અને અનિર્ધારિમ, આ એ શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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