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________________ १०४ भगवतीसूत्रे मरणम् , एवं भावास्पन्ति कमरणप्रपि बामेवोहनीयम् । गौतमः पृच्छति-'बाल मरणे भंते ! कइविहे पणाने ? ' हे भदन्त ! बालपरणं खलु कतिविधं प्रज्ञप्तम् ? भगवानाह - ' गोयमा ! दुवालसविहे पणत्ते' हे गौतम ! बालमरणं द्वादशविधं पक्षप्तम् , ' तं जहा-बलयमाणं नक्षा बंदर जाव गिद्धपिटे' तद्यथा-वलयमरणं यथा स्कन्द के द्वितीय शत के प्रामोद्देश के स्कन्द प्रकरणे प्रतिपादित तौवात्रापि पतिपत्तव्यम् तथा च अत्यन्तावा गकुलतापूर्वकं मरणं वलयपरणमुच्यते, अथवा संयमाद् भ्रष्टस्य मरणं वलन्मरणं वलयमरणं वोच्यते, गृध्रपक्षिभिः, मृगयाकारि श्वादि पशुभिर्वा स्पृष्टाद्-विदारणाद् मरणं-गृध्रस्पृष्टभरणमुच्यते, झना चाहिये । तथा इसी प्रकार से यावत-कालात्यन्तिकमरण, भवात्य तिकमरण और भावात्यन्तिकमरण भी जानना चाहिये। ____अब गोलमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'पालमरणे णं भंते ! कइविहे १० गत्ते' हे भदन्त ! बालमरण कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! दुचालसविहे पण्णत्ते' हे गौतम ! बालमरण १२ प्रकार का कहा गया है। 'तं जहा' जो इस प्रकार से है-'बलयमरणं जहा खंदए जाव गिद्धष्टेि' उसके ये १२ भेद द्वितीयशतक के प्रधान उद्देशे में जो स्कन्दक प्रकरण आया है उसमें कहे गये हैं। यहां पहिला और अन्तिम भेद लिखा गया है । अत्यन्त क्षुधा से व्याकुलतापूर्वक जो मरण होता है-उसका नाम वलयमरण है । अथवा संयम से भ्रष्ट हुए जीव का जो भरण होता है वह बलन्मरण या घलय. मरण कहा गया है यह प्रथम भेद है। गृद्वपक्षियों के द्वाग अथवा દ્રવ્યાત્યન્તિકમરણના જેવું જ કથન ક્ષેત્રાત્યન્તિકમરણ, કાલાત્યન્તિકમરણ, ભવાત્યનિક મરણ અને ભાવાત્યન્તિક મરણના પ્રકાર આદિ વિષે પણ સમજવું. गौतम स्वामीन। प्रश्न-“बालमरणेण भंते! काविहे पण्णत्ते"ल. વન ! બાલમરણના કેટલા પ્રકાર કહ્યા છે? महावीर प्रभुने। उत्त२-" गोयमा! दुवालसविहे पण्णत्ते-तंजहा". गौतम ! २६ना नीचे प्रमाणे १२ ५२ हा छ-" वलयमरण जहा खंडए जाव गिद्धपिट्टे" भाग शतना पड़ा देशामा २२१६४ ४२५१ આવ્યું છે, તેમાં તેના વલયમરણથી લઈને વૃદ્ધસ્કૃષ્ટમરણ પર્યન્તના જે બાર ભેદે બતાવ્યા છે, તેમને અહીં ગ્રહણ કરવા જોઈએ અત્યંત સુધાને કારણે વ્યાકુલ તાપૂર્વક જે મરણ થાય છે, તેનું નામ વલય મરણ છે. અથવા સંયેમથી ભ્રષ્ટ થયેલા જીવનું જે મરણ થાય છે તેને વલમ્મરણ અથવા વલય. મરણ કહે છે આ પહેલે ભાવ છે. ગીધ આદિ શિકારી પક્ષીઓ દ્વારા શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
SR No.006325
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages906
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size53 MB
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