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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० ४ सू० १ परमाणुपुद्गलनिरूपणम् ७७ संखेज्जपएसिए खंधे, पगयो असंखेज्जपएसिए खंधे भवइ' अथवा एकतःएकभागे संख्येयप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, एकतः-अपरभागे असंख्येयपदेशिका स्कन्धो भवति, 'अहवा दो असंखेज्जपएसिया खंधा भवंति ' अथवा द्वौ असं. ख्येयप्रदेशिको स्कन्धौ भवतः, 'तिहा कज्जमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला, एगयओ असंखेज्जपएसिए खंधे भवइ' असंख्येयप्रदेशिकः स्कन्धविधा क्रियमाणः, एकतः-एकभागे द्वौ परमाणुपुद्गलौ भवतः, एकतः-अपरभागे असंख्येयप्रदेशिकः स्कन्धो भवति 'अहवा एगयो परमाणुपोग्गले, एगयो दुप्पएसिए, एगयओ असंखेज्जपएसिए खंधे भवइ' अथवा एकता-एकभागे परमाणुपुद्गलो भवति, एकतः-अपरभागे द्विपदेशिकः स्कन्धो भवति, एकतः-अन्यभागे असं. है" इस पाठ का ग्रहण हुआ है । ' अहवा-एगयो संखेज्जपएसिए खंधे, एगयओ असंखेज्जपएसिए खंधे भवइ' अथवा-एकभाग में संख्यातप्रदेशी स्कन्ध होता है, और अपरभाग में असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध होता है । 'अहया दो असंखेज्जपएसिया खंधा भवंति' अथवा दो असंख्यातप्रदेशी स्कंध होते हैं। 'तिहा कज्जमाणे एमयओ दो परमाणुपोग्गला, एगयओ असंखेज्जपएसिए खंधे भवइ'जय असंख्योत. प्रदेशी एक स्कन्ध के तीन प्रकार रूप विभाग किये जाते हैं तब एक भाग में दो परमाणुपुद्गल होते हैं और अपर भाग में असंख्यात. प्रदेशी एक स्कन्ध होता है। 'अहवा-गयओ परमाणुपोग्गले, एगपओ दुप्पएसिए, एगयो असंखेज्जपएसिए खंधे भवह' अथवा-एकभाग में एक परमाणुपुद्गल होता है, अपर भाग में एक हिप्रदेशिक स्कन्ध होता है, और अन्य भाग में एक असख्यानप्रदेशिक स्कन्ध होता हैमसण्यात अशी २४५ डाय छे. “ अहवा-एगयओ संखेज्जपएसिए खंधे, एगयो असंखेमपएसिप खधे भवइ" मा से विभागमा सज्यात પ્રદેશ સ્કંધ હોય છે અને બીજા વિભાગમાં અસંખ્યાત પ્રદેશ સકંધ હોય छ. " अहवा-दो असंखेज्जपएसिए खंधा भवंति " अथवा मे असण्यात प्रदेशी ४५ ३५ मे विमाणे थाय छ. “तिहा कज्जमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला, एगयओ असंखेज्जाएसिए खंधे भवइ" क्य३ ते मन्यात પ્રદેશ સ્કંધના ત્રણ વિભાગે કરવામાં આવે છે, ત્યારે બે વિભાગમાં એક એક પરમાણુ પુગલ હોય છે અને એક વિભાગમાં અસંખ્યાત પ્રદેશી એક २४५ डाय छ " अहवा-एगयओ परमाणुगेग्गले, एगयओ दुप्पएसिए, एगयओ असंखेज्जपएसिए खंधे भव" अथवा मे ५२मा पुगवाणी पडता વિભાગ, દ્વિદેશિક સ્કંધ રૂપ બીજો વિભાગ અને અસંખ્યાત પ્રદેશી સ્કધ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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