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________________ भगवतीसूत्रे परमाणुपुद्गला भवन्ति, एकत:- अपरभागे पश्च प्रदेशिकः स्कन्धो भवति, 'अहवा एगयओ चत्तारि परमाणुपोग्गला, एगयओ दुप्पएसिए खंधे एगयओ चउप्परसिए खं भव' अथवा एकतः - अपरभागे चत्वारः परमाणुपुद्गलाः भवन्ति, एकतःअपरभागे द्विदेशिकः स्कन्धो भवति, एकतः - अन्यभागे चतुष्पदेशिकः स्कन्धो भवति, ' अहवा एगयओ चत्तारि परमाणुपोग्गला, एगयओ दो तिप्पएसिया खंधा भवंति, अथवा एकत: - एकभागे चत्वारः परमाणुपुद्गला भवन्ति, एकत: - अपरभागे द्वौ त्रिदेशिको स्कन्धौ भवतः, 'अहवा एगयो तिनि परमाणुपोग्गला, एगयओ दो दुष्यएसिया खंधा भवंति एगयओ तिप्वएसिए खंधे, भव' अथवा एकत:एकभागे त्रयः परमाणुपुदला: भवन्ति, एकतः - अन्यभागे द्वौ द्विमदेशिक स्कन्धौ भवतः एकता - अन्यभागे त्रिमदेशिकः स्कन्धो भवति, 'अहवा एगयओ दो परपांच परमाणुपुद्गल होते हैं, अपरभाग में पांचप्रदेशोंवाला एक स्कंध होता है, 'अहवा - एगयओ चत्तारि परमाणुपोग्गला, एगयओ दुप्पएसिए खंधे, एगयओ चउप्पएसिए खंधे भवइ' अथवा - एक भाग में चार परमाणुपुल होते हैं, एक भाग में एक द्विप्रदेशी स्कंध होता है, और एक अन्यभाग में एक चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध होता है। 'अहवा - एगयओ चत्तारि परमाणुपोग्गला, एगयओ दो तिप्पएसिया खंधा भवंति' अथवा एक भाग में चार परमाणुपुद्गल होते हैं, दूसरे भाग में दो त्रिपदेशिक स्कन्ध होते हैं, 'अहवा - एगयओ तिनि परमाणुपोग्गला, एगयओ दो दुष्पएसिया खंधा भवंति एगयओ तिप्पएसिए खंधे' अथवा एकभाग में तीन परमाणुपुद्गल होते हैं, एक दूसरे भाग में दो द्विप्रदेशी स्कंध होते हैं और अन्यभाग में एक त्रिप्रदेशी स्कंध होता है ' अहवा - एगयओ दो पर ६० "" પ્રદેશિક એક કધ રૂપ છઠ્ઠો વિભાગ થાય છે. 66 अहवा - एगयओ चत्तारि परमाणुपोग्गला, एगयओ दुप्पएसिए खंधे, एगयओ चउप्परसिए खंधे भवइ અથવા એક એક પરમાણુ પુકૂલ રૂપ ચાર વિભાગેા, દ્વિપ્રદેશિક સ્મુધ રૂપ मेड पिलाग भने यार अहेशि सुध ३५ मेड विभाग थाय छे. " अहवाएगयओ चत्तारि परमाणुपोग्गला, एगयओ दो तिप्पएसिया खंधा भवंति " અથવા એક એક પરમાણુ પુપ્તેલવાળા ચાર વિભાગ અને ત્રિપ્રદેશિક એ સ્કંધ રૂપ બે વિભાગો થાય છે. अहवा - एगयओ तिनि परमाणुपोग्गला, एमओ दुप्पएसिया खंधा, एगयओ तिप्पएसिए खंधे " अथवा थोड थोड ५२० માણુ પુદ્ગલવાળા ત્રણ વિભાગેા, એ દ્વિપ્રદેશિક ક'ધ રૂપ એ વિભાગો અને त्रिदेशि सुध ३५ मेड विभाग थाय छे, " अहवा - एगयओ दो पर 66 શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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