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________________ ६२२ भगवतीसूत्रे यस्स' हे गौतम ! जघन्यपदे-जघन्येन, त्रिभिः अधर्मास्तिकायप्रदेशैः, उत्कृष्ट पदे-उत्कृष्टेन, षभिः अधर्मास्तिकायमदेशैः एकोऽधर्मास्तिकायप्रदेशः स्पृष्टो भवति, शेषं यथा धर्मास्तिकायस्य प्रतिपादितं तथैव अधर्मास्तिकायस्यापि प्रतिपत्तव्यम् , तथा च एकस्य अधर्मास्तिकायप्रदेशस्य शेषाणामाकाशास्तिकायादीनां प्रदेशः स्पोंहि पूर्वोक्तकधर्मास्तिकायप्रदेशस्पर्शानुसारेणेवावसेयः ६, गौतमः पृच्छति-एगे भंते ! 'आगासत्थिकायपएसे केवहरहिं धम्मत्थिकायपएसेहि पुढे ?' हे भदन्त ! एकः खलु आकाशास्तिकायप्रदेशः कियद्भिः धर्मास्तिकायप्रदेशः स्पृष्टो भवति ? भगवानाह-गोयमा ! सिय पुढे सिय नो पुढे, जइ पुढे जहन्नपदे छहिं से सं जहा धम्मत्थिकायस्स' हे गौतम ! जघन्यरूप से वह अधमास्तिकाय का एक प्रदेश तीन अधर्मास्तिकाय प्रदेशों से और उत्कृष्ट रूप से वह अधर्मास्तिकाय का एक प्रदेश ६ अधर्मास्तिकाय प्रदेशों से स्पृष्ट होता है । बाकी का और सब कथन यहां पर धर्मास्तिकाय के विषय में जैसा किया गया है वैसा ही कर लेना चाहिये। तथा च- अधर्मास्तिकाय के एकप्रदेश का शेष आकाशास्तिकायादिकों के प्रदेशों से स्पर्श पूर्वोक्त एक धर्मास्तिकाय प्रदेश स्पर्श के अनुसार ही जानना चाहिये । ६। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'एगे भंते ! आगासस्थिकायपएसे केवइएहिं धम्मस्थिकायपएसेहिं पुढे' हे भदन्त ! आकाशास्तिकाय का एकप्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? इसके उत्तर में प्रभु मडावीर प्रभुने। उत्तर-" जहन्नपए तिहि, उक्कोसपए छहि, सेस जहा धम्मस्थिकायस्व" 3 गौतम! अपमास्तियन से प्रदेश माछामा माछ। ત્રણ અને વધારેમાં વધારે છ અધમસ્તિકાય પ્રદેશો વડે પૃષ્ટ થાય છે બાકીનું સમસ્ત કથન ધર્માસ્તિકાયના વિષયમાં ઉપર કરેલા કથન અનુસાર સમજવું એટલે કે અધર્માસ્તિકાયના એક પ્રદેશને આકાશાસ્તિકાય આદિના પ્રદેશ દ્વારા સ્પર્શ પૂર્વોક્ત એક ધર્માસ્તિકાય પ્રદેશના સ્પર્શ અનુસાર જ समान थे. ॥१॥ गौतम स्वामीन --" एगे भंते ! आगासस्थिकायपएसे केवइएहि धम्मत्यिकायपएसेहिं पुढे " है भगवन् ! शास्तियन मे प्रदेश ધર્માસ્તિકાયના કેટલા પ્રદેશે વડે પૃષ્ટ થાય છે? શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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