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________________ ५७४ भगवतीसूत्रे महड्डियतरा चेत्र १, नो महज्जुइयतरा चेव २' अतएव ते सप्तमपृथिवी नैरयिकाः असादिकतराश्चैव भवन्ति, तेषां षष्ठपृथिव्यपेक्षया अवध्यादि ऋद्धेरल्पत्वात् , एवम्-ते अल्पातिकतराश्चैव भवन्ति तेषां दीप्तेरभावाद , अतएव ते नो तथा महर्द्धिकतरात्रैव भवन्ति, यथा षष्ठपृथिवीस्थनैरथिका महर्द्धिकतरा भवन्ति । एवं ते नो, महाद्युदिकतराश्चैव भवन्ति, यथा षष्टपृथिवी नायिका महाद्युतिकतरा भवन्ति तथा नेत्यर्थः । षष्ठ नारकं प्ररूपयितुमाह-'छट्ठीएणं तमाए पुढवीए एगे पंचूणे निरयावाससयसस्से पण्णत्ते' षष्ठयां खलु तमायां पृथिव्यम् एकं पञ्चोनं निरयावासशतसहस्र-पश्चन्यूनैक रक्षनिरयावासाः प्रज्ञप्तम् । 'ते णं नरगा अहे सत्तमाए पुढवीए नरएहितो नो तहा महंततरा चेव १, महाविस्थिन्नतरा चेव २, क्योंकि इन सातवीं पृथिवी के नैरपिकों की अवध्यादि ऋद्धि छठी पृथिवी के नैरयिकों की अपेक्षा अल्प होती है। इसी प्रकार से ये उनकी अपेक्षा दीप्ति का अभाव होने से अल्पदीप्तिवाले होते हैं। इसलिये जैसे छठी पृथिवी के नैरयिक महर्द्धिकतर होते हैं ऐसे ये महर्द्धिकतर नहीं होते हैं। और न महाद्युतिकतर होते हैं । अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं कि हे भदन्त ! छठी पृथिवी जो तमः प्रभा नामकी है उसमें कितने नैरयिकावास कहे गये हैं ? और यहां के नैरयिकों की क्या हालत है ? इसके उत्तरमें प्रभु कहते हैं-'छडीए णं तमाए पुढवीए एगे पंचूणे निरयावाससयसहस्से प० गत्ते' हे गौतम! छठी तमः प्रभा नाम की जो पृथिवी हैं उसमें पांच कम एक लाख नरकावास कहे गये हैं 'ते णं गरगा अहे सत्तमाए पुढ़वीए नरएहितो નરકના નાકે અલ્પઝદ્ધિવાળા અને અલ્પદીપ્તિવાળા હોય છે સાતમી નારકના નારકની અવધિ આદિ શક્તિ છઠ્ઠી નરકના નારકની અવધિ આદિ અદ્ધિ કરતાં ન્યૂન હોય છે. છઠ્ઠી નરકના નારકેના શરીરની દીપ્તિકરતાં સાતમી નરકના નારકની દીપ્તિ ઓછી હોય છે. તેથી જ તેમને અ૫તર ઋદ્ધિવાળા અને અ૫તર દીપ્તિવાળા કહ્યા છે. ગૌતમ સ્વામીને પ્રશ્ન - હે ભગવદ્ નમ:પ્રભા નામની છઠ્ઠી નરકમાં કેટલા નરકાવાસો કહ્યા છે ? ત્યાં નારકોની હાલત કેવી છે? मडावीर प्रसुना उत्तर-“छट्ठीपणं तमाए पुढवीए एगे पंचूणे निरयावास सयसहस्से पण्णत्ते" हे गीतम! छटी तमामा न२४मा मतi पांय न्यून (erec५) २४ासो छे. “वेणं णरया अहे सत्तमाए पुढवीए શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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