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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १३ उ० २ सू० १ देवविशेषनिरूपणम् ५४९ " उत्कृष्टेन संख्येयाः प्रज्ञप्ताः शेषाः उक्तपञ्चातिरिक्ताः असंख्येया भणितव्याः तथा च केवलं नो इन्द्रियोपयुक्तादिषु पश्चपदेषु संख्येया एव तेषामुत्पादावसरे एव सद्भावात् उत्पत्तिश्व संख्येयानामेव, आरणच्चुरस एवं चैव जहा आणयपाणएस नातं विमाणे, एवं गेवेज्जगावि ' आरणाच्युतयोः कल्पयोस्तु एवमेव पूर्वोक्तदेव यथा आनतप्राणयोः कल्पयोः प्रतिपादितं तथैत्र प्रतिपत्तव्यम्, नानात्वंपृथक्त्वं त्रिशतत्वम् विमानेषु बोध्यम्, एवं - पूर्वोक्तरीत्यैव ग्रैवेयका अपि नवप्रकारकाः आनतप्राणतादिवदेव अवसेयाः तथा च नवग्रैवेयकविमानानां पृथक्त्वम् अष्टादशाधिकशतत्रयम् गौतमः पृच्छति' कइणं भंते ! अणुत्तरविमाणा पण्णत्ता ?' अनन्तर पर्याप्तक ये सब जघन्य से एक या दो या तीन तक कहे गये हैं और उत्कृष्ट से संख्यात तक कहे गये हैं । इनसे अतिरिक्त और सब असंख्यात कहे गये हैं । तथा च केवल नोइन्द्रियोपयुक्तादिक पांच पदों में संख्यात ही उत्पन्न होते हैं क्योंकि इनका उत्पाद के अवसर में ही सद्भाव रहता है। और उत्पत्ति संख्यातों की ही होती है। 'आरणच्चुएल एवं चेव जहा आणयपाणएसु, नाणन्तं विमाणेसु, एवं गेवेज्जगा त्रि' जैसा कथन आनतप्राणत कल्पों में किया जाता है वैसा ही आरण और अच्युत इन दो कल्पों में भी करना चाहिये । परन्तु विमानों की संख्या में भिन्नता है और वह तीन सौ ३०० के रूप में है । अर्थात् यहां विमानों की संख्या तीनसौ ३०० है । आनतप्राणत इन दो कल्पों में किये गये कथन के अनुसार ही नवग्रैवेयकों में भी कथन जानना चाहिये । परन्तु यहाँ पर भी विमानों की अपेक्षा से भिन्नता है- क्योंकि यहां पर विमानों की संख्या ३१८ कही गई । तब कि आनतप्राणत में विमानों की संख्या ४०० कही गई है । ઓછામાં ઓછા એક, એ અથવા ત્રણુ કહ્યા છે અને વધારેમાં વધારે સંખ્યાત उद्या छे. ते सिवायना अधां असंख्यात उद्या छे. प्रेम .... डेज नो इन्द्रि ચાપયુક્ત આદિ પાંચ પદેશમાં સખ્યાત જ ઉત્પન્ન થાય છે, કારણુ તેમના ઉત્પાદના અવસરમાં જ સદૂભાવ રહે છે. અને ઉત્પત્તિ સખ્યાતેની જ થાય छे. " आरणच्चुए एवं चैव जहा आणयपाणएसु, नाणत्तं विमाणेसु, एवं गेवेज्जगा वि " उथन मानतप्राशुतना विषे करवामां भाव्यु छे, वु કથન આરણ અને અચ્યુત વિષે પણ કરવુ' જોઇએ પણ વિમાનાની સખ્યામાં જ ભિન્નતા છે. આ બન્ને કલ્પામાં ૩૦૦ વિમાના છે, ત્યારે આનતપ્રાજીતમાં ૪૦૦ વિમાને છે. ત્રૈવેયકમાં વિમાનાની સંખ્યા ૩૧૮ ની છે. બાકીનું કથન આનતપ્રાણતના પ્રમાણે સમજવુ', શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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