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भगवतीसूत्रे
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'इमी से भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावास सय सहस्से सु संखेज्न वित्थडा नरगा कि सम्मfests नेरइएहिं अविरहिया वा भिच्छादिट्ठीहि नेरइएहि अविरहिया, सम्मामिच्छादिट्ठीहिं नेरइएहिं अवरहियावा?' हे मदन्त ! अस्यां खलु रत्नप्रभायां पृथिव्यां त्रिंशति निरयावासशतसहस्रेषु संख्येयविस्तृता नरकाः किं सम्यग्दृष्टिभिर्नैरथिचैरविरहिता:-विरहवर्जिता युक्ता इत्यर्थः सन्ति किं वा मिथ्यादृष्टिभिररिविरहिताः सन्ति १ किं वा सम्यगुमिध्यादृष्टिमिर्ने र यि कैरविरहिता वासन्ति ? भगवानाह - गोयमा ! सम्मीिहिं वि नेरइएहिं अविरहिया, मिच्छादिट्ठीहिं विनेरइरहिं अविरहिया सम्मामिच्छादिट्ठीहिं नेरइएहिं अविरहिया, विरहिया वा' हे गौतम । रत्नप्रभायां पृथिव्यां संख्येयविस्तृता नरकाः सम्यग्दृष्टिभिरपि नैरयिकैरविरहिताः सन्ति, एवं मिथ्यादृष्टिभिरपि नैरयिकै उद्वर्त्तना करते हैं । परन्तु जो मिश्रदृष्टि नैरयिक हैं वे वहां से उर्त्तना नहीं करते हैं । अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं 'इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावास सय सहस्सेसु संखेज्ज वित्थडा नरगा कि सम्मद्दिहीहि नेरहएहिं अवरहिया, मिच्छादिट्ठीहिं नेरइएहिं अविरहिया, सम्माच्छिादिट्ठीहिं नेरइएहिं अविरहिया वा' हे भदन्त । इस रत्नप्रभा पृथिवी में जो ३० लाख नरकवास हैं सो उनमें जो संख्यातयोजन के विस्तारवाले नरकावास हैं, वे क्या सम्यग्दृष्टियों से सहित हैं ? या मिध्यादृष्टियों से या सम्यग्रमिथ्यादृष्टियों से सहित हैं ? इसके उत्तर में प्रभुने कहा- 'गोयमा' हे गौतम! 'सम्मद्द्द्विी हि विनेर इएहिं अविरहिया, मिच्छादिद्विहिं वि नेरइएहिं अविरहिया, सम्मामिच्छादिट्ठी हिं नेरइरहिं अविरहिया, बिरहिया वा' रत्नप्रभापृथिवी में जो संख्यातयोजन के विस्तारवाले नरकावास हैं, वे सम्यग्दृष्टि नैरयिकों से भी
गौतम स्वामीनी प्रश्न -" इमोसे णं भंते । रयणप्पभाए पुढवीए तीचाए निरयावास सय सहसेसु संखेज्जवित्थडा नरगा कि सम्महिद्वीहिं नेरइएहि अविर - हिया, मिच्छाद्दिट्ठीहिं नेरइपहिं अविरहिया, सम्मामिच्छाद्दिट्ठीहिं नेरइएहिं अविर• हिया वि" हे भगवन् ! या रत्नप्रभा पृथ्वीना ३० सास नरडावासीमांना સખ્યાત ચેાજનના વિસ્તારવાળા નરકાવાસે શું સમ્યષ્ટિ નારકાથી યુક્ત છે ? કે મિથ્યાર્દષ્ટિ નારકાથી યુક્ત છે? કે સભ્યસ્મિથ્યાદૃષ્ટિ નારકાથી યુકત છે ?
महावीर प्रभुना उत्तर- " गोयमा ! " हे गौतम! “ ' सम्मट्ठीहिं वि नेरइएहिं अविरहिया, मिच्छाद्दिट्ठीहिं वि नेरइएहिं अविरहिया, सम्मामिच्छा हिट्ठीहि नेrsहिं अविरहिया, बिरहिया वा " रत्नप्रला पृथ्वीना ने सभ्यात योजनना વિસ્તારવાળા નરકાવાસા છે, તેઓ સમ્યગ્દષ્ટિનારકાથી પશુ યુક્ત છે,
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦