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________________ भगवतीसूत्रे नपुंसकमात्रवेदत्वात् अत एवाह-'जहण्णेणं एकको वा, दो वा, तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा नपुंसगवेयगा उपचति ' जघन्येन एको वा, द्वौ वा, त्रयो वा, उत्कृष्टेन संख्येया नपुंसकवेदका उपपयन्ते, 'एवं कोहकसाई जाव लोभकसाई उपवज्जति' एवं तथैव क्रोधकषायिणो यावत्-मानकषायिणः, मायाकपायिणः, लोभकषामिणो जयन्येन एको वा, द्वौ वा, त्रयो वा, उत्कृष्टेन संख्येया उपपद्यन्ते, 'सोइंदिय उवउत्ता न उववज्जंति, एवं जाव फासिंदियोवउत्ता न उववज्जति' श्रोत्रेन्द्रियोपयुक्ता न उपपद्यन्ते, एवं तथैव यावत्-चक्षुरिन्द्रियोपयुक्ताः, घ्राणेन्द्रियोपयुक्ताः, रसनेन्द्रियोपयुक्ताः, स्पर्शनेन्द्रियोपयुक्ताः, नोपपद्यन्ते इन्द्रियणां तदानीमसद्भावात् , 'जहण्णेणं एको वा, दो वा, तिनि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा और न पुरुषवेदक उत्पन्न होते हैं, क्योंकि यहां पर भवप्रत्यय-(नरक के भव में) नपुंसकवेदमात्र हो होता है, इसीलिये यहां 'जहण्णेणं एक्को वा, दो वा, तिन्नि वा उक्कोसेणं संखेज्जा नपुंसगवेयगा उववज्जति' जघन्य से एक दो अथवा तीन और उत्कृष्ट से संख्यात् नपुंसकवेदक जीच उत्पन्न होते हैं ऐसा कहा गया है । 'एवं कोह कसाई' जाव लोभकसाई उववज्जंति' इसी प्रकार से क्रोधकषायी, यावत् मानकषायी, मायाकषायी और लोभकषायी जीव जघन्य से एक, दो अथवा तीन और उत्कृष्ट से संख्यात उत्पन्न होते हैं 'सोइंदिय उवउत्ता न उववज्जति' एवं जाव फासिदियोवउत्ता न उववति' श्रोत्रेन्द्रियोपयुक्त चक्षुइन्द्रियोपयुक्त एवं घाणेन्द्रियोपयुक्त जीव भी यहां उत्पन्न नहीं होते हैं क्योंकि उस समय इन्द्रियों का अभाव रहता है 'जहण्जेणं एको वा, दो वा, तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा नो इंदियोवउत्ता उवઉત્પન્ન થતા નથી, કારણ કે ત્યાં ભવપ્રત્યય (નરકના ભવમાં) નપુંસકવેદ मात्र डाय छे. तेथी त्यां "जहण्णेणं एक्को, वा, दो वा, तिन्नि वा, उक्कोसेण संखेज्जा नपुंसगवेयगा उज्जंति" मेछामा माछा मे, मे मथवा અને વધારેમાં વધારે સંખ્યાત નપુંસકવેદક જીવ ઉત્પન્ન થાય છે, એવું ४थु छ "एवं कोहकसाई जाव लोभकसाई उववज्जति" मे प्रभार ક્રોધકષાયી, માનકષાયી, માયાકષાયી અને લેભકષાયી જી પણ ઓછામાં એક, બે અથવા ત્રણ અને વધારેમાં વધારે સંખ્યાત ઉત્પન્ન થાય છે. "खोइंदिय उवउत्ता न उतवज्जंति एवं जाव फासिदियोवउत्ता न उववज्जंति" શ્રેગેપિયુક્ત, ચક્ષુઈન્દ્રિય પયુકત, ધ્રાણેન્દ્રિય પયુકત અને સ્પર્શેન્દ્રિયોપયુકત જેની ત્યાં ઉત્પત્તિ થતી નથી, કારણ કે તે સમયે ત્યાં ઈન્દ્રિયને શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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